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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट प्रथम
चौथे महाव्रत की पाँच भावनाएं
१. विविक्त शयनासन - जिस स्थान पर स्त्रियों का संसर्ग हो उस स्थान पर सांधु सोवे नहीं, आसन लगाकर बैठे नहीं। जिस घर के द्वार का आंगन, अवकाश स्थान ( छत आदि), गवाक्ष (गोरव आदि), शाला अभिलोकन (दूरस्थ वस्तु देखने का स्थान), पीछे कां द्वार या पीछे का घर, श्रृंगार - गृह और स्नान घर आदि जहाँ स्त्रियां हो या दिखाई दें, उन स्थानों को वर्जित करे। जिस स्थान पर बैठकर स्त्रियां मोह, द्वेष, रति और राग बढ़ाने वाली अनेक प्रकार की बातें करती हों, वैसी कथा कहानियां कहती हों और जिन स्थानों पर वेश्याएं बैठती हों उन स्थानों को वर्जित करे। क्योंकि वे स्थान स्त्रियों के संसर्ग से संक्लिष्ट होने से दोषोत्पत्ति के कारण हैं ।
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ऐसे अन्य सभी स्थानों का साधु त्याग कर दे। जहाँ रहने से मन में भ्रान्ति उत्पन्न होकर ब्रह्मचर्य को क्षति युक्त करे, ब्रह्मचर्य देशतः या सर्वतः नष्ट हो जाता है, आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान उत्पन्न हों, उन सभी स्थानों का त्याग करे । ब्रह्मचर्य को नष्ट करने वाले ये स्थान कुशील रूप पाप से डरने वाले साधु के लिये रहने योग्य नहीं हैं। इसलिये साधु अन्त-प्रान्त आवास (अन्त - इन्द्रियों के प्रतिकूल पर्ण कुटी आदि, प्रान्त - शून्यं गृह श्मशानादि) रूप ऐसे निर्दोष स्थान में रहे। इस प्रकार स्त्री और नपुंसक के संसर्ग रहित स्थान में रहने रूप समिति के पालन से अन्तरात्मा पवित्र होती है। जो साधु ब्रह्मचर्य के निर्दोष पालन में तत्पर होकर इन्द्रियों के विषयों से निवृत्त रहता है, वह जितेन्द्रिय एवं ब्रह्मचर्य गुप्त कहलाता है।
२. स्त्री कथा वर्जन - स्त्रियों के मध्य बैठ कर विविध प्रकार की कथा वार्ता नहीं कहना । स्त्रियों के बिब्बोक (स्त्रियों की कामुक चेष्टा) विलास (स्मित- कटाक्षादि) हास्य और श्रृंगार युक्त लौकिक कथा नहीं कहे । ऐसी कथाएं मोह उत्पन्न करती हैं। वर-वधु सम्बन्धी रसीली बातें और स्त्रियों के सौभाग्य, दुर्भाग्य के वर्णन भी नहीं करना चाहिए । कामशास्त्र वर्णित महिलाओं के चौसठ गुण, उनके वर्ण, देश, जाति, कुल, रूप, नाम, नैपथ्य ( वेशभूषा) और परिजन सम्बन्धी वर्णन भी नहीं करना चाहिए। स्त्रियों के श्रृंगार रस, करुणाजन्य विलाप आदि तथा इसी प्रकार की अन्य मोहोत्पादक कथा भी नहीं करनी चाहिए। ऐसी कथाएं तप, संयम, ब्रह्मचर्य की घात और उपघात करने वाली होती है। ऐसी कथा कहना सुनना निषिद्ध है। मन में भी इस प्रकार का चिन्तन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार
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