________________
१२८
आवश्यक सूत्र - षष्ठ अध्ययन
५. साकार - जिसमें उत्सर्ग और अपवाद रूप आगार रखे जाते हैं, उसे साकार कहते हैं।
६. अनाकार - जिस तप में आगार न रखे जाएं, उसे अनाकार कहते हैं। ७. परिमाणकृत - जिसमें दत्ति आदि का परिमाण किया जाय। ८. निरवशेष - जिसमें अशनादि का सर्वथा त्याग हो।
९. संकेत - जिसमें मुट्ठी खोलने आदि का संकेत हो, जैसे - 'मैं जब तक मुट्ठी नहीं खोलूंगा तब तक मेरे प्रत्याख्यान है' इत्यादि।
१०. अद्धा प्रत्याख्यान - मुहूर्त, पौरुषी आदि काल की अवधि के साथ किया. जाने वाला प्रत्याख्यान।
प्रत्यारव्यान सूत्र
१. नवकारसी उग्गए सूरे णमुक्कारसहियं पच्चक्खामि, चउव्विहं पि आहारं - असणं, . पाणं, खाइमं, साइमं । अण्णत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, वोसिरामि ।
कठिन शब्दार्थ - उग्गए सूरे - सूर्योदय होने पर, णमुक्कारसहियं - नमस्कार सहित (नवकारसी, नमस्कारिका ), पच्चक्खामि - प्रत्याख्यान करता हूं, चउव्विहं पि - चारों ही प्रकार के, आहारं - आहार का, असणं - अशन, पाणं - पान, खाइमं - खादिम, साइमंस्वादिम, अण्णत्थ - अन्यत्र, अणाभोगेणं - अनाभोग, सहसागारेणं - सहसाकार।
भावार्थ - सूर्य उदय होने पर - दो घड़ी, दिन चढ़े तक - नमस्कार सहित प्रत्याख्यान ग्रहण करता हूँ और अशन, पान, खादिम, स्वादिम चारों ही प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ। अनाभोग - अत्यन्त विस्मृति या अप्रत्याख्यान का उपयोग न रहने से और सहसाकारशीघ्रता में या अचानक कुछ खाने पीने में आ गया हो तो इन दो आगारों के सिवाय चारों आहार वोसिराता हूँ - त्याग करता हूँ।
. स्वयं पच्चक्खाण करना हो, तब तीन बार 'वोसिरामि' ऐसा बोले, जब दूसरे एक को पच्चक्खाण कराना हो, तब तीन बार 'वोसिरे' ऐसा बोले तथा दूसरे एक से अधिक को पच्चक्खाण कराना हो तब तीन बार 'वोसिरह' ऐसा बोले।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org