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________________ ****************** "पच्चक्खाणेणं आसवदाराई णिरुभइ, पच्चक्खाणेणं इच्छाणिरोहं जणयइ, इच्छाणिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीड़भूए विहरड़ ।" - प्रत्याख्यान करने से आस्रवद्वारों का निरोध होता है । प्रत्याख्यान करने से इच्छा का निरोध होता है। इच्छा का निरोध होने से जीव सभी पदार्थों में तृष्णा रहित बना हुआ परम शांति से विचरता है । प्रत्याख्यान के भेद मूलपाठ में इस प्रकार बताये हैं - दसविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा अणागयमइक्कंतं, कोडीसहियं णियंटियं चेव । सागारमणागारं, परिमाणकडं णिरवसेसं ॥१ ॥ संकेयं चेव अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥ कठिन शब्दार्थ - दसविहे दशविध, पच्चक्खाणे प्रत्याख्यान, अणागयं अनागत, अइक्कंतं अतिक्रान्त, कोडीसहियं - कोटिसहित, णियंटियं सागारं साकार, अणागारं अनाकार, परिमाणकडं - परिमाणकृत, णिरवसेसं संकेयं - संकेत, अद्धाए - अद्धा । भावार्थ प्रत्याख्यान दस प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं १. अनागत २. अतिक्रान्त ३. कोटिसहित ४. नियन्त्रित ५ साकार ६ अनाकार ७. परिमाणकृत ८. निरवशेष ९. संकेत १०. अद्धा प्रत्याख्यान । विवेचन - भविष्य में लगने वाले पापों से निवृत्त होने के लिए गुरुसाक्षी या आत्मसाक्षी से हेय वस्तु के त्याग करने को प्रत्याख्यान कहते हैं। वह दस प्रकार का है - - १. अनागत - वैयावृत्य आदि किसी अनिवार्य कारण से, नियत समय से पहले ही तप कर लेना । - Jain Education International प्रत्याख्यान - • - - १२७ - २. अतिक्रान्त- कारणवश नियत समय के बाद तप करना । ३. कोटि सहित - जिस कोटि (चतुर्थ भक्त आदि के क्रम) से तप प्रारंभ किया, उसी से समाप्त करना । ४. नियन्त्रित - वैयावृत्य आदि प्रबल कारणों के हो जाने पर भी संकल्पित तप का परित्याग न करना । For Personal & Private Use Only नियन्त्रित, निरवशेष, www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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