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"पच्चक्खाणेणं आसवदाराई णिरुभइ, पच्चक्खाणेणं इच्छाणिरोहं जणयइ, इच्छाणिरोहं गए य णं जीवे सव्वदव्वेसु विणीयतण्हे सीड़भूए विहरड़ ।"
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प्रत्याख्यान करने से आस्रवद्वारों का निरोध होता है । प्रत्याख्यान करने से इच्छा का निरोध होता है। इच्छा का निरोध होने से जीव सभी पदार्थों में तृष्णा रहित बना हुआ परम शांति से विचरता है ।
प्रत्याख्यान के भेद मूलपाठ में इस प्रकार बताये हैं - दसविहे पच्चक्खाणे पण्णत्ते, तं जहा अणागयमइक्कंतं, कोडीसहियं णियंटियं चेव । सागारमणागारं, परिमाणकडं णिरवसेसं ॥१ ॥ संकेयं चेव अद्धाए, पच्चक्खाणं भवे दसहा ॥ कठिन शब्दार्थ - दसविहे दशविध, पच्चक्खाणे प्रत्याख्यान, अणागयं अनागत, अइक्कंतं अतिक्रान्त, कोडीसहियं - कोटिसहित, णियंटियं सागारं साकार, अणागारं अनाकार, परिमाणकडं - परिमाणकृत, णिरवसेसं संकेयं - संकेत, अद्धाए - अद्धा ।
भावार्थ
प्रत्याख्यान दस प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं १. अनागत २. अतिक्रान्त ३. कोटिसहित ४. नियन्त्रित ५ साकार ६ अनाकार ७. परिमाणकृत ८. निरवशेष ९. संकेत १०. अद्धा प्रत्याख्यान ।
विवेचन - भविष्य में लगने वाले पापों से निवृत्त होने के लिए गुरुसाक्षी या आत्मसाक्षी से हेय वस्तु के त्याग करने को प्रत्याख्यान कहते हैं। वह दस प्रकार का है -
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१. अनागत - वैयावृत्य आदि किसी अनिवार्य कारण से, नियत समय से पहले ही तप कर लेना ।
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प्रत्याख्यान
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२. अतिक्रान्त- कारणवश नियत समय के बाद तप करना ।
३. कोटि सहित - जिस कोटि (चतुर्थ भक्त आदि के क्रम) से तप प्रारंभ किया, उसी से समाप्त करना ।
४. नियन्त्रित - वैयावृत्य आदि प्रबल कारणों के हो जाने पर भी संकल्पित तप का
परित्याग न करना ।
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नियन्त्रित, निरवशेष,
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