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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
को स्वीकार करता है। अपनी जागृति को सुरक्षित रखने के लिए विषय कषायादि औदयिक भाव रूप अमार्ग का त्याग करता है और क्षयोपशमिकादि भाव रूप मार्ग को स्वीकार करता है, इस प्रकार साधक अपनी साधना में जागृति टिकाये रखने के लिए जिनवाणी की महिमा कथन पूर्वक भाव विभोर होकर आराधना के लिए कटिबद्ध होता हुआ अकार्यों से निवृत्ति और कार्यों में प्रवृत्ति की भावना रखता है, इससे जीवन पर बड़ा हितकारी असर होता है। .
उपर्युक्त प्रकार से जैसा इन आठ पदों का सम्बन्ध ध्यान में आया है वह बताया गया है इसी प्रकार के अन्य सम्बन्ध भी बिठाये जा सकते हैं। क्योंकि सूत्र के अनन्त गम पर्याय होते हैं।
क्षमापना सूत्र
आयरिय उवज्झाए का पाठ आयरिय उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य । जे मे केई कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि ॥ १ ॥ सव्वस्स समणसंघस्स, भगवओ अंजलिं करिय सीसे । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि ॥ २ ॥ सव्वस्स जीवरासिस्स, भावओ धम्म-निहिय निय चित्तो । सव्वं खमावइत्ता, खमामि सव्वस्स अहयं पि* ॥ ३ ॥
कठिन शब्दार्थ - आयरिय - आचार्य पर, उवज्झाए - उपाध्याय पर, सीसे - शिष्य पर, साहम्मिए - साधर्मिक पर, गणे - गण पर, कसाया - कषाय किये हो, खामेमि - खमाता हूं, सीसे - शिर पर, सव्वस्स - सब, समण संघस्स - श्रमण संघ से, खमावइत्ताक्षमा करके, अहयं पि - मैं भी, जीवरासिस्स - जीव राशि से, भावओ - भाव से, धम्म निहिय-निय-चित्तो- धर्म में अपने चित्त को स्थिर करके।
• रागेण व दोसेण व अहवा, अकयन्नुणा पडिनिवेसेणं।
जं मे किंचि वि भणियं, तमहं तिविहेण खामेमि॥ अर्थ - राग,द्वेष, अकृतज्ञता अथवा आग्रहवश मैंने जो कुछ भी कहा है उसके लिए मैं मन, वचन, काया से सभी से क्षमा चाहता हूँ। (किसी किसी प्रति में यह पाठ अधिक है)।
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