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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
पुरुषार्थ न करते हुए काल को ही कोसना जैसे कि - 'यह पांचवां आरा है, हम धर्म करणी कैसे करें' इत्यादि रूप से कहना पर अपनी प्रवृत्ति नहीं सुधारना भी काल आशातना है।
१७. सुयस्स आसायणाए (श्रुत की आशातना) - जैन धर्म में श्रुतज्ञान को भी धर्म कहा है। बिना श्रुतज्ञान के चारित्र कैसा? श्रुत तो साधक के लिए तीसरा नेत्रं है, जिसके बिना शिव बना ही नहीं जा सकता। श्रुत की आशातना साधक के लिए अतीव भयावह है। .
"जैनश्रुत, साधारण भाषा प्राकृत में है, पता नहीं उसका कौन निर्माता है? वह केवल कठोर चारित्र धर्म पर ही बल देता है। श्रुत के अध्ययन के लिए काल मर्यादा का बंधन क्यों है?" इत्यादि विपरीत विचार और वर्तन श्रुत की आशातना है। .
१८. सुयदेवयाए आसायणाए (श्रुतदेवता की आशातना) - श्रुत देवता का अर्थ है - श्रुतनिर्माता तीर्थंकर तथा गणधर। तीर्थंकर श्रुत के मूल अधिष्ठाता है, गणधर, रचयिता है अतः वे श्रुतदेवता कहलाते हैं। तीर्थंकर एवं गणधर की, उनके प्ररूपित श्रुत की आशातना, श्रुतदेवता की आशातना है।
१९. वायणायरियस्स आसायणाए (वाचनाचार्य की आशातना) - आचार्य, उपाध्याय की आज्ञा से शिष्यों को श्रुत की वाचना आदि देने वाले को वाचनाचार्य कहते हैं। वाचनाचार्य की आशातना करना, अनादर करना, वाचनाचार्य आशातना है।
२०. वाइद्धं २१. वच्चामेलियं २२. हीणक्खरं २३. अच्चक्खरं २४. पयहीणं २५. विणयहीणं २६. जोगहीणं २७. घोसहीणं २८. सुठुदिण्णं २९. दुठ्ठपडिच्छियं ३०. अकाले कओ सज्झाओ ३१. काले ण कओ सज्झाओ ३२. असज्झाइए सज्झाइयं ३३. सज्झाइए ण सज्झाइयं, इन आशातनाओं का वर्णन ज्ञान के अतिचार के पाठ में पूर्व में आ चुका है।
प्रतिज्ञा सूत्र
नमो चढवीसाए (निग्रंथ प्रवचन) का पाठ णमो चउवीसाए तित्थयराणं उसभाइ-महावीर पजवसाणाणं । इणमेव णिग्गंथं पावयणं सच्चं, अणुत्तरं, केवलियं, पडिपुण्णं, णेयाउयं, संसुद्ध, सल्लगत्तणं, सिद्धिमग्गं, मुत्तिमग्गं, णिजाणमग्गं, णिव्याणमग्गं, अवितह
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