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________________ प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ १०१ comcoomoooooomeOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO00000000 ४. स्त्यानगृद्धि ६. चक्षुदर्शनावरणीय ७. अचक्षुदर्शनावरणीय ८. अवधिदर्शनावरणीय और ९. केवलदर्शनावरणीय। २. वेदनीय कर्म की दो प्रकृति - १. सातावेदनीय और २. असातावेदनीय। २ मोहनीय कर्म की दो प्रकृति - १. दर्शनमोहनीय और २. चारित्र मोहनीय। ४ आयु कर्म की चार प्रकृति - १. नरकायु २. तिर्यंचायु ३. मनुष्यायु और ४. देवायु। २ नामकर्म की दो प्रकृति - १. शुभ नाम और २. अशुभ नाम। २ गोत्र कर्म की दो प्रकृति - १. उच्च गोत्र और २. नीच गोत्र। ५ अंतराय कर्म की पांच प्रकृति - १. दानान्तराय २. लाभान्तराय ३. भोगांतराय ४. उपभोगांतराय और ५. वीर्यान्तराय। सिद्धों के गुणों का एक प्रकार और भी है - पांच संस्थान, पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श, तीन वेद, शरीर, आसक्ति और पुनर्जन्म - इन सब इकत्तीस दोषों के क्षय से भी इकत्तीस गुण होते हैं (आचारांग)। आदि गुण का अर्थ है - ये गुण सिद्धों में प्रारंभ से ही होते हैं, यह नहीं कि कालान्तर में होते हों। क्योंकि सिद्धों की भूमिका क्रमिक विकास की नहीं है। __आचार्य श्री शांतिसूरि 'सिद्धाइगुण' का अर्थ - 'सिद्धाऽतिगुण' करते हैं। अतिगुण का भाव है - 'उत्कृष्ट असाधारण गुण।' । ... जोगसंगहेहिं (योग संग्रह) - मोक्ष साधना में सहायक, दोषों को दूर कर के शुद्धि करने वाले, ऐसे प्रशस्त योगों के संग्रह को योग संग्रह कहते हैं। मन, वचन और काया की शुभ प्रवृत्ति रूप शुभ-योग के ३२ भेद समवायांग सूत्र में इस प्रकार कहे हैं - १. आलोचना - गुरु के समक्ष शुद्ध भावों से सच्ची आलोचना करना। २. निरपलाप - शिष्य या अन्य कोई अपने सामने आलोचना करे, तो वह किसी को नहीं कह कर अपने में ही सीमित रखना। ३. दृढ़ धर्मिता - आपत्ति आने पर भी अपने धर्म में दृढ़ रहना। ४. निराश्रित तप - किसी भी प्रकार की भौतिक इच्छा के बिना अथवा किसी दूसरे की सहायता की अपेक्षा के बिना तप करना। ५. शिक्षा - सूत्र और अर्थ रूप ग्रहण तथा प्रतिलेखनादि रूप आसेवना की शिक्षा ग्रहण करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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