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________________ [10] का निरोध होता है, इच्छा का निरोध होने से जीव सभी पदार्थों में तृष्णारहित बना हुआ शीतीभूत-परम शांति से विचरता है। __इस प्रकार शुद्ध भाव से कालोकाल (सुबह-सायंकाल) छह आवश्यक की आराधना करने से महान् कर्मों की क्षपणा होती है एवं उत्कृष्ट रसायन आने पर तीर्थंकर नाम कर्म का बंध भी हो सकता है। अतएव प्रत्येक साधक को द्रव्य और भाव पूर्वक दोनों समय प्रतिक्रमण करना चाहिये। ___ हमारे संघ द्वारा आवश्यक सूत्र (प्रतिक्रमण) का प्रकाशन छोटी साईज में हुआ, जिसकी ६ (छह) आवृत्तियाँ निकल चुकी है। किन्तु संघ की आगम-बत्तीसी प्रकाशन योजना के अन्तर्गत यह ३२वाँ अन्तिम आगम बड़ी साईज में विवेचन युक्त प्रथम बार पाठक बन्धुओं के श्रीचरणों में रखते हुए प्रसन्नता हो रही है। इसके अनुवाद का कार्य मेरे सहयोगी श्रीमान् पारसमलजी सा. चण्डालिया ने प्राचीन टीकाओं के आधार पर किया है। इस अनुवाद को धर्मप्रेमी सुश्रावक श्रीमान् राजकुमारजी कटारिया, जगदलपुर ने वर्तमान ज्ञानगच्छाधिपति श्रुतधर भगवंत की आज्ञा से आगमज्ञ पूज्य लक्ष्मीचन्दजी म. सा. को सुनाने की कृपा की। पूज्यश्री ने जहाँ कहीं भी आगमिक धारणा सम्बन्धी न्यूनाधिकता महसूस की वहाँ संशोधन करने का संकेत किया। अतः हमारा संघ पूज्य गुरु भगवन्तों का एवं धर्मप्रेमी सुश्रावक श्रीमान् राजकुमारजी कटारिया का हृदय से आभार व्यक्त करता है। तत्पश्चात् मैंने इसका अवलोकन किया। ____ इसके अनुवाद में भी संघ द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के अनुवाद (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन) की शैली का अनुसरण किया गया है। यद्यपि इस आगम के अनुवाद में पूर्ण सतर्कता एवं सावधानी रखने के बावजूद विद्वान् पाठक बन्धुओं से निवेदन है कि जहाँ कहीं भी कोई त्रुटि, अशुद्धि आदि ध्यान में आवे वह हमें सूचित करने की कृपा करावें। हम उनका आभार मानेंगे और अगली प्रकाशित होने वाली आवृत्ति में उन्हें संशोधित करने का ध्यान रखेंगे। संघ का आगम प्रकाशन का काम पूर्ण हो चुका है। इस आगम प्रकाशन के कार्य में धर्म प्राण समाज रत्न तत्त्वज्ञ सुश्रावक श्री जशवंतलाल भाई शाह एवं श्राविका रत्न श्रीमती मंगला बहन शाह, बम्बई की गहन रुचि है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
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