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कुतुबुद्दीन ने ई. सन् ११६७ में पुनः बनारस पर आक्रमण किया । वो आगे लिखते हैं कि बनारस के मन्दिर कुछ दशक तक पुनः निर्मित नहीं हो पाये क्योंकि मुसलमान अधिकारी इस बार मन्दिर न बनने देने के लिए कटिबद्ध थे। इसी बीच ई. सन् १२३६ से १२४० में रजिया मसजिद बनी। तत्पश्चात् मुसलमान अधिकारी कुछ नर्म पड़े व बनारस के मन्दिरं अपने पुराने स्थान पर बनने लगे ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि यह मन्दिर १३ वी शताब्दी में सन् १२४० ई. के बाद किसी समय पुनः निर्मित हुआ । निश्चय नहीं कि इस समय राजघाट का जैन मन्दिर छोड़ कर भेलूपुरा मन्दिर, पार्श्वनाथ स्वामी की जन्मस्थली होने से पुनः निर्मित हुआ अथवा किला क्षेत्र में मुसलमान गर्वनर का अधिक आतंक
होने से वहाँ का मन्दिर पुनः निर्मित नहीं हुआ । इस पुनः निर्मित मन्दिर का स्वरूप तो पूर्ववत था परन्तु वहाँ की वेदियों एवं मूर्तियों का अनुमान इन पुरावशेषों से नहीं मिल सकता । इस विध्वंस के बाद की व दूसरे विध्वंश से पहली मूर्तियाँ अब भी भेलूपुर में पूजा में हैं। जो मूर्तियां पूजा में आज हैं उनके लेखों का अध्ययन होने से कुछ अनुमान लग सकेगा कि तेरहवीं शताब्दी में कौन मूर्तियां पूजा में रखी गईं ।
दूसरा विध्वंस :
श्री कुबेरनाथ शुक्ल का कहना है कि ई. सन् १४६४ से १४६६ में सिकन्दर लोदी ने पुनः बनारस के मन्दिरो को तोड़ दिया । वो सब मन्दिर लगभग ६० वर्ष तक बरबाद रहे । ६० वर्ष बाद ही उन मन्दिरों का पुनः निर्माण हुआ 1 इस प्रकार स्पष्ट है कि १४६४ से १४६६ में यह मन्दिर पुनः ध्वस्त हुआ । भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ पुस्तक में स्यादवाद महाविद्यालय के अकलंक पुस्तकालय के एक हस्तलिखित ग्रन्थ जिसका नाम सामायिक नित्य प्रतिक्रमण पाठ है का सन्दर्भ देकर यह बतलाया कि ई. सन १५६२ में भेलूपुर में पार्श्वनाथ मंदिर विद्यमान था” । पुनः बनारसी दास प्रसिद्ध हिन्दी जैन कवि की लिखी आत्मकथा अर्धकथानक - के संदर्भ से बताया है कि उनका जन्म वर्ष १५६६ में हुआ ६ या ७ माह के बालक को ही बनारस में श्री पार्श्व प्रभू के चरणों
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