________________
धारण करते हैं । (84)। यह ठीक ही कहा गया है कि दोष तो गुणों से पोंछ दिए जाते हैं-गुणेहि दोसा फुसिज्जति, (86) किन्तु जन्मसंयोग से क्या किया जाता है-जाईह कि व किज्जइ । सच है गुणों से वैभव प्राप्त किया जाता है (87) मूल्यों का धारक मूल्यों के अनुभव से हीन व्यक्ति में कुछ भी परिवर्तन नहीं ला सकता। ठीक ही है जन्म से अन्धे के लिए हाथ में पकड़ा हुआ दीपक निष्फल ही होता है (88)। जिस व्यक्ति के जीवन में मूल्य प्रविष्ट हुए हैं, उसको परलोक में चलेजाने पर भी पश्चाताप नहीं होता (89) । अतः जो लोग मूल्यों का जीवन नहीं जीते है, उनसे किसी को कोई लाभ नहीं होता है (90)। गुणी व्यक्ति जहाँ भी रहता है, महत्वपूर्ण बन जाता है (94)। यह सच है क जो किसी गुणी व्या की इच्छा का अनुसरण करता है उसके मर्म है का रक्षण करता है, उसके गुणों को प्रकाशित करता है, वह मनुष्यों का ही नहीं, किन्तु देवताओं का भी प्रिय हो जाता है (38) । यह समाज एवं व्यक्ति का कर्तव्य है कि वे ऐसे व्यक्ति की जो मूल्यों को जोवन में साकार किए हुए है, पूर्ण पावर से रक्षा करें, क्योंकि चन्द्र बिंब के अस्त होने पर तारों द्वारा प्रकाश नहीं किया जा सकेगा (72,73) वास्तव में देखा जाय तो समाज की शोभा गुणी व्यक्ति से ही होती है, जैसे तालाब की शोभा हंस से.होती है (69) गुणी व्यक्ति सभ्य समाज में सुखी होता है तथा सभ्य समाज भी गुणी व्यक्ति के बिना शोभा नहीं पाता है । जैसे मानसरोवर के बिना राजहँसों के लिए सुख नहीं होता है वैसे ही मानवसरोवर भी उनके बिना नहीं शोभता है, (70)। इसमें सन्देह नहीं है कि मूल्यों-सहित और मूल्यों-रहित व्यक्ति में बहुत भेद होता है, जैसे हँस और बतक में, हँस और कौए में (66,67,68)। किसी व्यक्ति की मूल्यों में निष्ठा का ज्ञान उचित अवसर पर ही लगता है और वह उचित स्थानों पर ही सामने आता है, जैसे हाथी की महिमा राजा के आंगन में स्थित होने पर ही
- iv
]
[. वज्जालग्ग में
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org