________________
ववहार-वहम्मि [(ववहार)-(वह) 7/1] होति (हो) व 3/2 प्रक सप्पुरिसा (सप्पुरिस) 1/2 इहरा (प्र) = अन्यथा गोसामणेहि (णीसामण्ण) 3/2 वि तेहिं (त) 3/2 सवि कह (प्र) = कैसे संग (संगम) 1/1 होइ (हो) व 3/1 प्रक .. d प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमान काल का प्रयोग भविष्यत् काल
के अर्थ में हो जाता है। . • किसी कार्य का कारण बतलाने के लिए संज्ञा शब्द में तृतीया या पंचमी का प्रयोग किया जाता है। .
82. उक्करिसो (उक्करिस) 1/1 च्चेप्र (अ)ही ण (म) = नहीं जाण
(ज) 6/2 सवि ताण (त) 6/2 सवि को (क) 1/1 सवि वा (अ)-कभी गुणाण' (गुण) 6/2 गुण-भावो [ (गुण)-(भाव) 1/1] सो (त) 1/1 सवि वा (प्र)=संभवतः पर-सुचरिन लंघणेण [(पर) वि-(सुचरिप) वि-(लंघण) 3/1] ण (प्र) = नहीं गुणत्तणं (गुणत्तण) 1/1 तह वि (म) तो भी * कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) • संभावना अर्थ में 'वा' प्रश्नवाचक सर्वनाम के साथ जोड़ दिया जाता है।
83. गवरं (म) = केवल दोसा (दोस) 1/2 ते (त) 1/2 सवि च्चेष
(प्र) = ही जे (ज) 1/2 सवि मप्रस्त(मप्र) भूक 6/1 अनि वि (अ)=भी जणस्स (जण) 6/1 सुव्वंति (सुव्वंति) व कर्म 3/2 सक पनि गज्जति (गज्जति) व कर्म 3/2 सक अनि जिअंतस्स
वाक्पतिराज की
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org