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अवउज्झिअ मित्तबंधवं, विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइअंगवेसए, समयं गोयम ! मा पमायए ||३०|| अपोह्य मित्रबान्धवं, विपुलं चेव धनौघसंचयम् । मा तद् द्वितीयं गवेषय, समयं गौतम ! मा प्रमादयेः ।।३०।। न ह जिणे अज्ज दिस्सई, बहुमए दिस्सई मग्गदेसिए । संपइ नेआउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ||३१।। नैव जिनोऽद्य दृश्यते, बहुमतः दृश्यते मार्गदेशितः | सम्प्रति नैयायिके पथि, समयं गौतम ! मा प्रमादयेः ||३१|| अवसोहिअ कंटगापहं, ओइन्नोऽसि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिआ, समयं गोयम ! मा पमायए ||३२।। अवशोध्य कण्टकपथं, अवतीर्णोऽसि पन्थानं महालयम् । गच्छसि मार्ग विशोध्य, समयं गौतम ! मा प्रमादयेः ||३२।। अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवगाहिआ | पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मा पमायए ।।३३।। अबलो यथा भारवाहकः, मा मार्ग विषममवगाह्य । पश्यात् पश्याद्नुपातकः, समयं गौतम ! मा प्रमादयेः ।।३३।।
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