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130 जेण रागा विरज्जेज्ज, जेरण सेएसु रज्जदि ।
जेण मित्ती पभावेज्ज, तं गाणं जिणसासणे ॥
- 131 जो पस्सदि अप्पारणं, अबद्धपुढं अणण्णमविसेसं ।
अपदेससुत्तमझ, पस्सदि जिणसासरणं सव्वं ॥
132 एवम्हि रदो पिच्चं, संतुट्ठा होहि णिच्चमेदम्हि ।
एदेण होहि तित्तो, होहिदि तुह उत्तमं सोक्खं ॥
133 लद्धणं निहिं एक्को, तस्स फलं अणुहवेइ सुजगते ।
तह गाणी गाणरिणहि, भुजेइ चइत्तु परतत्ति ॥
134 सक्किरियाविरहातो इच्छितसंपावयं ण नाणं ति ।
मग्गण्णू , वाऽचेट्ठो, वातविहीणोऽधवा पोतो॥
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[ समणसुत्तं
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