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121. कही गई अधिक बात से क्या लाभ है ? (इतना ही कहना
पर्याप्त है कि) उस सम्यक्त्व (आध्यात्मिक जागृति) की महिमा को जानो (जिसके कारण) श्रेष्ठ मनुष्य भूतकाल में (समता की प्राप्ति में) सफल हुए हैं (और) (भविष्य में) भी श्रेष्ठ मनुष्य (समता की प्राप्ति में) सफल होंगे।
122. (सुखों के लिए वस्तुओं को) उपयोग में लाते हुए भी
(अनासक्ति के कारण) कोई (व्यक्ति) (तो) (उन पर) आश्रित नहीं होता है (और परम शान्ति प्राप्त कर लेता है), (किन्तु) (उनको) उपयोग में न लाते हुए भी (कोई) (व्यक्ति) (आसक्ति के कारण) (उन पर) आश्रित (रहता है) (और) परम शान्ति प्राप्त नहीं कर पाता है) । (ठीक ही है) किसी के लिए (किए गए) श्रेष्ठ कार्य के प्रयास के कारण भी (आसक्ति के अभाव के कारण) (कोई) (व्यक्ति) (उस) श्रेष्ठ कार्य से (दृढ़ रूप से) संबंधित नहीं होता है। (अतः कहा जा सकता है कि प्रासक के कारण ही वस्तुओं से संबंध जुड़ता है, जीव के कर्म-बन्धन होता है और उसमें अशान्ति उत्पन्न होती है)।
123. सम्यग्दृष्टि जीव (अध्यात्म में) शंका रहित होते हैं, इसलिए
(वे) निर्भय. (होते हैं); चूंकि (सम्यग्दृष्टि जीव) सात' -(प्रकार के) भयों से मुक्त (होते हैं), इसलिए निश्चय ही (वे) अध्यात्म मे) शंका-रहित (होते हैं)।
1. लोक-भय, परलोक-भय, प्ररक्षा-भय, अगुप्ति-भय (संयमहीन होने का भय)
मृत्यु-भय, वेदना-भय और अकस्मात्-भय ।
चयनिका ]
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