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100 उत्तमगुणारण धामं, सव्वदव्वारण उत्तमं दव्यं । तच्चारण परं तच्चं, जीवं जारगेह णिच्छ्रयदो ॥
101 जीवा हवंति तिविहां, बहिरप्पा तह य अंतरप्पा य । परमप्पा विय दुविहा, प्ररहंता तह य सिद्धा य ॥
102 अक्खाणि बहिरप्पा, अंतरप्पा हूं श्रप्पकप्पो । कम्मकलंक - विक्को, भण्णए देवो ॥
परमप्पा
103 ससरीरा श्ररहंता, केवलरणारोण मुणिय - सयलत्था । खारणसरीरा सिद्धा, सम्युत्तम सुक्ख-संपत्ता ॥
104 श्रारुहवि अंतरप्पा, बहिरप्पा छंडिऊरण तिविहेण । भाइब्जइ परमप्पा, उवइट्ठ जिरवरदेहि ॥
105. प्ररसमरूवमगंध,
जाण
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श्रव्वत्तं
श्रलिंगग्गहणं,
चरणागुणमसद्दं । जीवमरिगट्टिसंठारणं ॥
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[ समरणसुत्तं
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