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________________ 94. अच्छा तो, जिन (इन) पाँच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं की जाती है : अहंकार से, क्रोध से, प्रमाद से, रोग से, तथा आलस्य से । 95-96 अच्छा तो (जो) (व्यक्ति) (दूसरों का उपहास करने वाला नहीं है, (जो ) सदा नियन्त्रित ( रहता है) तथा (जो ) ( दूसरे की) गुप्त बात को प्रकट नहीं करता है, ( वह) शिक्षा से सम्पन्न कहा जाता है । (इनके अतिरिक्त) (जो) (व्यक्ति) नैतिकता - रहित नहीं ( है ), ( जो ) दुर्व्यवहार - पूर्ण नहीं (है), (जो) अति लालची नहीं ( है ), (जो) चिड़चिड़ा नहीं ( है ), (जो) सत्य की खोज में लीन रहता है, (वह) (भी) शिक्षा से सम्पन्न कहा जाता है । (इन उपर्युक्त) आठ कारणों से (व्यक्ति शिक्षा से सम्पन्न कहा जाता है) । 97. ( जो ) (व्यक्ति) (नैतिक-आध्यात्मिक) ग्रन्थों का अध्ययन करके श्रुत-साधना में संलग्न (होता है ), ( वह ), ( मूल्यात्मक ) ज्ञान को ( प्राप्त करता है), तथा एकाग्र चित्तवाला (होता है) और ( वह) ( स्वयं ) ( मूल्यों में) जमा हुआ ( रहता है) (और) दूसरे को भी ( मूल्यों में) जमाता है । शुभ 98. (जो ) सदा गुरु के सान्निध्य में रहता है, (जो ) प्रवृत्तिवाला ( है ), ( जो ) स्नेहशील ( है ), ( जो ) दूसरों की भलाई करनेवाला ( है ) और (जो ) मधुर बोलनेवाला ( है ), ( वह ) शिक्षा प्राप्त करने के लिए योग्य होता है । 99. जैसे एक दीपक से दीपकों की बड़ी संख्या जलती है और वह दीपक ( भी ) जलता है, (वैसे ही) दीपक के समान प्राचार्य (स्वयं) प्रकाशित होते हैं तथा दूसरों को प्रकाशित करते हैं । [ 35 चयनिका ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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