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________________ प्राक्कथन ___भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण-महोत्सव के अवसर पर जैनधर्म के प्राचीन मूल ग्रंथों में से चुने हुए सूत्रों का संकलन ‘समण-सुत्तं' के रूप में प्रकाशित किया गया था, जिससे कि जैन-धर्म के बारे में पूरी जानकारी एक ही ग्रंथ में उपलब्ध हो सके। इस संकलन की उपयोगिता के कारण इसका चारों ओर से स्वागत किया गया। इसमें संकलित सभी सूत्र प्राकृत भाषा में हैं और सुबोधता के लिए साथ में अनुवाद भी दिया गया है। ग्रन्थ में सैद्धान्तिक सूक्ष्मताएं भी जगह-जगह पर प्राप्त होती हैं और प्राकृत भाषा को समझना भी सबके लिए सरल नहीं है। वैसे ग्रंथ का प्रमाण भी बड़ा है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत 'समणसुत्त' चयनिका की अपनी ही विशिष्टता है । मूल ग्रंथ के 756 सूत्रों में से इसमें मात्र 170 सूत्र चुने गये है, जो जैन-धर्म के मूल तथ्यों का प्रतिपादन तो करते हैं, परन्तु उनमें कहीं पर भी साम्प्रदायिकता नहीं झलकती है। चाहे जैन हों या अजैन सबके लिए यह समानरूप से उपयोगी है, क्योंकि यह 'आत्म-धर्म' क्या है ? उसके बारे में विशद जानकारी प्रस्तुत करता है । इसे हम लघु 'धम्मपद' की संज्ञा दे सकते हैं। साथ ही साथ सूत्रों के प्रत्येक प्राप्त शब्द-रूप को एक नये ही ढंग से 'व्याकरणिक विश्लेषण' में इस तरह समझाया गया है कि किसी भी पप्राकृतभाषी मध्येता के लिए वह सरलता से ग्राह्य है। सूत्रों के हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी अनुवाद से अहिन्दी एवं विदेशी लोगों के लिए भी यह ग्रंथ. उपयोगी बन गया है। सूत्रों के आधार से इस ग्रंथ में आगे दी गयी 'वाक्य. मणियां' सूक्तियों के समान उपयोगी बन पड़ी हैं। विद्वान् लेखक प्राचीन मूम ग्रंथों की पटिलतामों को तोड़कर अपनी चयनिकानों द्वारा धार्मिक एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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