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________________ _____12. अरिहंत, अशरीर (सिद्ध), प्राचार्य, उपाध्याय (तथा) मुनि ये पंच परमेष्ठी अर्थात् पाँच आध्यात्मिक स्तम्भ (हैं)। (इनके प्रथम) पाँच अक्षरों (अ+अ+आ+उ+म) से निकला हुआ 'ओम्' (होता है)। . . (जो) अरहंत द्वारा प्रतिपादित अर्थ गणधर' देवों द्वारा (शब्द-रूप में) भली प्रकार से रचा हुआ (है)। (उस) श्रुतज्ञानरूपी महासमुद्र को भक्ति-सहित (मैं) सिर से प्रणाम करता हूँ। 14. (जो) स्व-सिद्धान्त तथा पर-सिद्धान्त का ज्ञाता (है), (जो) सैंकड़ों गुणों से युक्त (है), (जो) गंभीर, प्राभायुक्त, सौम्य ' (तथा) कल्याणकारी (है), (वह ही) (अरहंत के द्वारा प्रतिपादित) सिद्धान्त के सार को कहने के लिए योग्य (होता 15. . (तुम) स्वयं से (स्वयं के लिए) जो कुछ चाहते हो और (तुम) स्वयं से (स्वयं के लिए) जो कुछ नहीं चाहते हो, . (क्रमशः) उसको (तुम) दूसरे के लिए चाहो और (न चाहो); इतना ही जिन-शासन (है)। 16. (श्रमण) संघ तो सब (प्राणियों) के लिए शरण, तसल्ली (और) भरोसा (होता है), शीतल घर के समान (शान्तिदायक) तथा माता-पिता के समान (प्रेम करने वाला) होता . है । (अतः) तुम डरो मत । _i. परहंत के द्वारा उपदिष्ट ज्ञान को शब्द-बद्ध करने वाले। . चयनिका ] [ 7 Jain Education International i For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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