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________________ (सरण) 1 / 1 । उत्तमं (उत्तम) 1 / 1 वि । (मर) विधिकृ अवस्समरियव्वं ] 166 धीरेण (धीर) 3 / 1 वि । वि (प्र) = भी। मरियव्वं 1 / 11 काउरिसेण ( काउरिस) 3 / 1 । वि (ध) = भी। [ ( श्रवस्स) = श्रावश्यकरूप से - मरियव्वं (मर) विधिक 1 / 1] । तम्हा (प्र) इसलिए । अवस्समरले [ ( श्रवस्स) वि - ( मरण) 7 / 1] | वरं ( अ ) = अधिक अच्छा। सु ( अ ) = निश्चय ही । घोरत्तण' ( धीरतरण) 7 / 1 । मरिचं (मर) हे । 1. कभी कभी विधि कृदन्त का प्रयोग केवल भविष्यत् काल को ही सूचित करता है । 1 2. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-135 ) 1 165 सेणावइम्मि' (सेरगाव) 7 / 1 । जिहए' (हि) 7 / 1 भूक भनि । जहा ( अ ) = जिस तरह । (सेरणा) 1 / 1 | पणस्सई (परणस्स) व 3 / 1 अक । एवं (अ) इस प्रकार । कम्माणि (कम्म) 1/2 | णस्सं ति ( एस्स) व 3 / 2 धक। मोहणिज्जे' (मोहरिगज्ज) 7 / 1। खयं (खय) 2 / 1। गए ( ग ) 7 / 1 भूकृ अनि । 1. यदि एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया हो तो पहली क्रिया में कृदन्त का प्रयोग होता है भीर यदि कर्तुं वाच्य है तो कर्ता श्रीर कृदन्त में सप्तमी होगी, यदि कर्मवाच्य है तो कर्म और कृदन्त में सप्तमी होगी, कर्त्ता में तृतीया । 2. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है 166 जेण' (ज) 3 / 1 स | बिना ( अ ) = बिना । लोगस्स (लोग) 6/11 वि (प्र) = ही । बबहारी ( ववहार) 1 / 1 । सव्वहा ( प्र ) = बिल्कुल | न ( प्र ) = नहीं । निव्वहर ( निव्वह) व 3 / 1 प्रक। तस्स (त) 6/1 1. बिना के योग में तृतीया, द्वितीया पंचमी विभक्ति होती है । चयनिका ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ 149 www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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