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________________ (इच्छसे)] । किं (अ)=क्यों। इच्छसे (इच्छ) व 2/1 सोई (जोइ) 8/1। इच्छसि (इच्छ) व 2/1 सक। जइ (अ) =यदि । परलोयं [(पर) वि-(लोय) 2/1] । तेहिं (त) 3/2 स । कि (प्र)= क्या । तुझ. (तुम्ह) 4/1 । परलोये [(पर) वि-(लोय) 7/1] । 125 मत्येव [(जस्थ)+ (एव)] जत्थ (अ)= जहां एव (म)= भी । पासे (पास) विधि3/1सक । कइ (अ) = कहीं। दुप्पउत्तं (दुप्पउत्तं) भूक 2/1 पनि । कारण (काम) 3/1 । वाया' (वाया) 3/1 अनि । प्रदु (प्र)= या। माणसे (माणस) 3/1 | तत्वेव [(तत्थ)+(एव)] तत्य (प्र) = वहां एव (म)=ही । धीरो (धीर) 1/1 वि । परिसाहरेमा (पडिसाहर) विधि 3/1 सक । आइजो (प्राइण्ण) 1/1 । खिप्पमिवक्सलीणं [(खिप्पं)+ (इव)+(क्खलीणं)] खिप्पं (म) तुरंत इव (अ) = जैसे क्खलीणं (क्खलीण) 2/1 - 1. वाच-वाचा-वाया। 126 जो (ज) 1/1 सवि । पम्मिएसु (धम्मिन) 7/2 । भत्तो (भत्त) भूकृ1/1 अनि । अणुचरणं (अणुचरण) 2/1 । कुणवि (कुण) व 3/1 सक । परमसताए [(परम) वि-(सद्धा) 3/1] | पियववणं [(पिय)-(वयण) 2/1] । जपतो (जंप) व 1/1 । वच्छल्ल (वच्छल्ल) 1/1। तस्स' (त) 6/1 स । मव्वस्स (भव्य) 6/1 वि । 1. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया . जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134)। 127 वह ह (म) =जैसे जैसे सुबमोगाहइ [(सुयं)+ (मोगाहइ)] सुर्य (सुम) 2/11 प्रोगाहइ (मोगाह) व 3/1 सक । मासयरसपसरसंयमपुग्वं [(भइसय) + (रस) + (पसर)+ (संजुयं) + (अपुष्वं)] [(प्रइसय)1. कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137)। 138.] [ समणसुतं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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