________________
(काल) 7/1 | सिम्झिहिति (सिज्झ) भवि 3/2 प्रक। जे (म)= पादपूरक । वि (प्र) = भी । भविया (भविय) 1/2 वि । तं (त) 2/1 स । जाण (जाण) व 3/1 सक।। (म) =वाक्यालंकार । सम्ममाहप्पं [(सम्म)
-(माहप्प) 2/1] । 122 सेवंतो (सेव) व 1/1 । वि (प्र) = भी। ग (म)=नहीं ! सेवा (सेव)
4 3/1 सक। असेवमागो (प्रसेव) व 1/1 | वि (प्र) = किन्तु । सेवगो (सेवग) 1/1 वि । कोई (अ) = कोई (कुछ मनुष्य)। पगरनवेवा [(प-गरण)-(चेट्टा) 5/1] | कस्स (क) 6/1 स । वि (म)=भी । ण (म) = नहीं। य (म)= बिल्कुल । पायरणो' (पायरण) 1/1 वि। त्ति (म) = निश्चय ही । सो (त)1/1 सवि । होई (होइ) व 3/1 मक । ___ 1. प्राकरणिक =प्राकरण (वि) (Monier Williams: p. 701
Col. III)। 2. पूरी या प्राधी गाथा के अन्त में प्रानेवाली 'इ' का क्रिया पदों में 'ई' हो जाता है (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण,
पृष्ठ 139)। 123 सका पिडी (सम्मदिट्ठि) 1/2 वि । जीवा (जीव) 1/2। णिस्संका
(हिस्संक) 1/2 वि । होति (हो) व 3/2 अक । णिग्मया (णिन्भय) 1/2 वि । तेण (प्र) = इसलिए । सत्तभयविप्पमुक्का [(सत्त)-(भय)(विप्पमुक्क) 1/2 वि ] । जम्हा (म)= चूकि । तम्हा (अ) = इसलिए।
(म)= निश्चय ही। 124 खाई-पूया-लाहं [(खाई)-(पूया)-(लाह)2/1] । सक्काराई [(सक्कार)
+ (माई)] [ (सक्कार) - (प्राइ) 2/1 ]| किमिच्छसे [(किं)+ 1. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाते हैं (हेम प्राकृत
व्याकरण : 1-4)। चयनिका ]
[ 137
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org