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________________ 60 अप्पा (अप्प) 1/1। नई (नई) 1/1। वेयरणी (वेयरणी) 1/11 मे (अम्ह) 4/1 स। कूड सामली (कूड. सामलि) 1/1 | कामवुहा (कामदुहा) 1/1 वि । घेणं (घेणु) 1/1। नंवणं (नंदण) 1/1। वणं (वण) 1/11 61 अप्पा (अप्प) 1/1। कत्ता (कत्तु) 1/1 वि । विकत्ता (विकत्तु) 1/1 वि । य (अ) = भी । दुहाण (दुह)6/2 । य (अ) = और । सुहाण (सुह) 6/2। य (अ) =तथा । मित्तममित्तं [(मित्तं)+(अमित्तं)] मित्तं (मित्त) 1/1 | अमित्तं (अमित्त) 1/11 च (अ) = और | दुप्पद्विय (दुप्पट्ठिय) मूल शब्द 1/1 वि सुप्पट्ठि) (सुप्पट्ठि) 1/1 वि । कर्ता कारक के स्थान में केवल मुल संज्ञा शब्द भी काम में लाया जा सकता है। (पिशल: प्रा. भा. व्या., पृ. 518)। 62 एगप्पा [(ऐग)+ (अप्पा)] [(एग) वि-(अप्प) 1/2] । अजिए (अजिअ) भूक 1/1 अनि । सत्त (सत्तु) 1/1 | कसाया (कसाय) 1/2 । इन्दियाणि (इन्दिय) 1/2 । य (अ) = और । ते (स) 2/2 स । जिणित (जिण) संकृ । जहानायं (अ) = उचित रीति से । विहरामि (विहर) व . 1/1 अक । अहं (अम्ह) 1/1 स । मुणी (मुरिण) 8/1 । 63 जो (ज) 1/1 स । सहस्सं (सहस्स) 2/1 वि । सहस्साणं' (सहस्स) 6/2 वि । संगामे (संगाम) 7/1। दुज्जए (दुज्जन) 7/1 वि । जिणे (जिण) विधि 3/1 सक । एगं (एग) 2/1 वि । अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 | जिरोज्ज (जिण) विधि 3/1 सक । एस (एत) 1/1 सवि । से (त) 6/1 स । परमो (परम) 1/1 वि । जओ (जन) 1/1 । 1. कभी कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-134) 64 अप्पाणमेव [(अप्पाणं) + (एव)] अप्पाणं' (अप्पाण) 2/1 एव 1. सप्तमी विभक्ति के स्थान पर कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है । (हेम प्राकृत व्याकरण, 3-137) 120 ] [ समणसुत्तं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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