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(समइक्क) संकृ । सुदुत्तरा (सु-दुत्तर) 1/2 वि । चेव (अ) = भी। भवंति (भव) व 3/2 अक । संसा (सेस) 1/2 वि । जहा (अ) = उदाहरणार्थ । महासागरमुत्तरित्ता [(महासागरं)-(उत्तरित्ता)] महासागरं (महासागर) 2/1 उतरित्ता (उत्तर) संकृ । नई (नई) 2/2 । भवे (भव) व 3/1 अक। अवि (प्र)= भी। गंगासमाणा [(गंगा)
स्त्री (समाण- समाणा) 2/2 वि] । 58 जा (जा) 1/1 स । वज्जई (वज्ज) व 3/1 अक । रयणी (रयणः)
1/1। न (प्र) = नहीं। सा (ता) 1/1 स । पडिनियत्तई (पडिनियत्त) व 3/1 अक । अहम्मं (अहम्म) 2/1 | कुणमाणस्स (कुण) वक 6/1। अफला (अफल) 1/2 वि । जन्ति (जा) व 3/2 प्रक। राइओ (राइ) 1/2 । 1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। 2. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है । 3. दीर्घ स्वर के आगे यदि संयुक्त अक्षर हो तो उस दीर्घ स्वर का हस्व - स्वर हो जाता है; जान्ति--जन्ति (हेम प्राकृत व्याकरण : 1-84) 4. विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता में हस्व हो जाते हैं
' (पिशल, प्रा. भा. व्या. पृष्ठ, 182) 59 अप्पा (अप्प) 1/1। जामई (जाण) व 3/1 सक। अप्पा' (अप्प)
5/1 | बहडिओ (जहटिअ) 1/1 वि । अप्पसक्खिओ [(अप्प)(सक्खिम) 1/1] | धम्मो (धम्म) 1/1 | अप्पा (अप्प) 1/1। करेइ (कर) व 3/1 सक । तं (त) 2/1 स । तह (अ) = इस तरह । जह (प्र) 1. किसी कार्य का कारण व्यक्त करने वाली (स्त्रीलिंग भिन्न) संज्ञा
में तृतीया या पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। . = जिससे । अप्पसुहावओ [(अप्प) + (सुह)+ (प्रावग्रो)] [(अप्प)
(सुह)-(प्रावन) 1/1 वि] । होइ (हो) व 3/1 अक ।
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