________________
17 जस्स (ज) 6/1 सवि । गुरुम्मि' (गुरु) 7/1। न (अ) = नहीं भत्ती
(भत्ति) 1/1। य (अ) = तथा । बहुमाणो (बहुमाण) 1/11 गउरवं (गउरव) 1/1। भयं (भय) 1/1 । वि (अ) = तथा । लज्जा (लज्जा ) 1/1। नेहो (नेह) 1/1। गुरुकुलवासेण [ (गुरु)- (कुल)- (वास) 3/1] । किं (किं) 1/1 सवि। तस्स (त) 6/1 सवि। 1 पादरसूचक शब्दों के साथ सप्तमी होती है। यहाँ भत्ति प्रादि
आदरसूचक शब्द हैं। 2 संज्ञा शब्दों के करण के साथ प्रयुक्त होकर बहुधा अर्थ होता है
'क्या लाभ है'। 18 खणमित्तसुक्खा [(खणमित्त)-(सुक्ख) 1/2 वि] । बहुकालदुक्ला [(बहु)
वि-(काल)-(दुक्ख) 1/2 वि] । पगामदुक्खा [(पगाम) वि-(दुक्ख) 1/2 वि] । अणिग्गामसुक्खा [(अरिणगाम) वि-(सुक्ख) 1/2 वि] । संसारमोक्खस्स [(संसार)-(मोक्ख) 6/1] । विपक्चभूया [(विपक्ख)(भूय) 1/2 वि] । खाणी (खाणि) 1/1। अणत्याण (प्रणत्य) 6/2 ।
उ (अ)-निश्चय ही। कामभोगा [(काम)-(भोग) 1/2।। 19 सुद्छु (प्र)= खूब अच्छी प्रकार से । वि (अ) = भी । मग्गिज्जतो (मग्ग)
कर्म व 1/1 । कस्यवि (प्र) = कहीं केलीइ (केलि) 7/1 । नस्थि (म)= नहीं। जह (अ)= जैसे सारो (सार)1/1 | इंविअविसएसु [(इंदिन)विसन)7/2] । तहा (प्र) = वैसे ही । सुहं (सुह)1/1 सुद्छु (प्र) = खूब
अच्छी तरह से । वि (प्र) = यद्यपि। गविळे (गविट्ठ) भूकृ 1/1 अनि । 20 जह (अ) जैसे कच्छुल्लो (कच्छुल्ल) 1/1 वि । कच्छु (कच्छु) 2/1। - कंड्रयमाणो (कंडूय) बक 1/1 । दुहं (दुह) 2/1 । मुणइ (मुण) व 3/1 . सक । सुक्खं (सुक्ख) 2/1 । मोहाउरा [(मोह) + (आउरा)] [(नोह)(प्राउर) 1/2 वि] । मणुस्सा (मणुस्स) 1/2 । तह (अ)= वैसे ही ।
कामदुहं [(काम)-(दुह) 2/1] । सुहं (सुह) 2/1 । बिति (बू) व 3/2 . सक ।
108 ]
[ समणसुत्तं
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org