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जैनन्यायपञ्चाशती गतिमान् है। जितना जल आगे जाता है उतना जल पीछे से आए हुए जल के द्वारा पूर्ण कर दिया जाता है। इस पद्धति से एक ही प्रवाह में उत्पाद और व्यय साथ ही देखे जाते हैं। गंगा तो वहां ध्रौव्यरूप से स्थित ही है। इस उदाहरण से उत्पाद, व्यय
और ध्रौव्य-ये तीनों स्थितियां जैसे गंगा में होती हैं उसी प्रकार प्रत्येक वस्तु में ये स्थितियां होती हैं। यहां गंगा उपमान है और पदार्थ (सत्) उपमेय है। त्रिपथगामिता' साधारण धर्म है और 'यथाशब्द' उपमा का वाचक है ।
यहां दूसरा उदाहरण बुलबुले का है। बुलबुला जल का आकारविशेष है। वर्षा ऋतु में बुलबुले बहुलता से देखे जाते हैं। जल के आघात से अथवा वायु आदि के आघात से तालाब आदि स्थानों में भी बुलबुले देखे जाते हैं। जब जल में बुलबुले उत्पन्न होते है तब वहां उत्पत्तिकाल में जल होता है जब जल में बुलबुले विनष्ट हो जाते हैं तब व्ययकाल में भी जल होता है। इस प्राकर उत्पाद और व्यय-इन दोनों अवस्थाओं में जल विद्यमान रहता है। इस प्रकार तीनों अवस्थाओं में जल रहता ही है । इन दोनों उदाहरणों से वस्तु की त्रयात्मकता स्पष्ट रूप से सिद्ध होती है।
__ (२९, ३०) साम्प्रतं मृदस्त्रिरूपत्वेन भावानां त्रयात्मकतां साधयति अब मिट्टी की त्रिरूपता से पदार्थों की त्रयात्मकता को सिद्ध कर रहे हैं
उत्पादो घटभावेन नाशो मृत्पिण्डरूपतः। ध्रुवत् पार्थिवत्त्वेन चैवं मृदस्त्रिरूपता॥२९॥
भावा अप्यनया युक्त्या स्वस्वरूपव्यवस्थिताः। उत्पद्यन्ते विपद्यन्ते, किन्तु नोज्झन्ति तदक्वचित् ॥३०॥
॥युग्मम्॥ मिट्टी का घट के रूप में उत्पाद और मृत्पिण्ड के रूप में विनाश होता है। पार्थिवरूप में वह ध्रुव है। इस प्रकार मिट्टी की त्रिरूपता सिद्ध होती है।
___ इसी घट की युक्ति से सब पदार्थ अपने-अपने स्वरूप में व्यवस्थित हैं, ध्रुव हैं। वे उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं, किन्तु अपने मूल स्वरूप को कभी भी नहीं छोड़ते।
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