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________________ 55 जैनन्यायपञ्चाशती सम्बन्ध से होता है। गुण और गुणी का समवायसम्बन्ध प्रसिद्ध है। समवाय नित्य सम्बन्ध है। संयोग सम्बन्ध की भांति यह अल्पकालिक सम्बन्ध नहीं है, किन्तु यह समवाय अधिष्ठान (आधार) के समान सत्तावाला है। आत्मा का गुण ज्ञान अपने आधारभूत आत्मा का कभी अतिक्रमण नहीं करता। अर्थात् आत्मा को छोड़कर वह क्षणभर भी बाहर नहीं रह सकता। यदि ज्ञान गुणी (आत्मा) का अतिक्रमण करता है तो उस ज्ञान का अस्तित्व आकाश कुसुम की भांति मिथ्या हो जाएगा। जैसे अरूपी आकाश का कुसुम नहीं होता उसी प्रकार ज्ञान भी यदि अपने आधारभूत आत्मा का परित्याग करता है तब आधारहीन ज्ञान की स्थिति कहां कही जा सकती है। उससे ज्ञान मिथ्या असत् हो जाएगा। यहां यह स्वीकार करना चाहिए कि ज्ञान अपने अधिष्ठान आत्मा को क्षणभर भी नहीं छोड़ता। इसलिए ज्ञान आत्मा से वियुक्त नहीं होता। इस प्रकार के ज्ञान का लक्षण क्या है? अथवा उसका स्वरूप क्या है, इस विषय में किसी का विरोध नहीं है कि जानना ज्ञान है। इस व्युत्पत्ति से ज्ञान प्रकाशात्मक है। ज्ञान स्वयं प्रकाशित होता हुआ पदार्थों को प्रकाशित करता है। यही (ज्ञान ही) हमारे व्यवहार का साधन है। ज्ञान के बिना कोई भी व्यवहार नहीं हो सकता। तर्कसंग्रह में कहा गया है-'सर्व-व्यवहारहेतुर्गुणो बुद्धिर्ज्ञानम्'-सारे व्यवहारों का हेतुभूत जो गुण है वही बुद्धि या ज्ञान है। यह ज्ञान स्वप्रकाश है। यदि ज्ञान स्वप्रकाश न हो तो उस ज्ञान को प्रकाशित करने के लिए द्वितीय ज्ञान की अपेक्षा होगी और द्वितीय को प्रकाशित करने के लिए तृतीय ज्ञान की आवश्यकता होगी और उसके प्रकाश के लिए चतुर्थ ज्ञान की आवश्यकता होगी। इस प्रकार यहां अनवस्था दोष आ जाएंगा। इसलिए ज्ञान की स्वतः प्रकाशी है, इसे स्वीकार करना चाहिए। ___ यह ज्ञान दो प्रकार का है-नित्य और अनित्य। नित्यज्ञान सभी मनुष्यों में, पशुओं में और पक्षियों में स्वतः प्राप्त होता है। तत्काल उत्पन्न बालक की दुग्धपान में प्रवृत्ति को देखकर तथा पक्षियों के अपने बच्चों की सुरक्षा की कामना से प्रशिक्षण के बिना ही विलक्षण घोसला बनाने की कला को देखकर कौन व्यक्ति ज्ञान की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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