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________________ 100 जैनन्यायपञ्चाशती जो तम में होती है वह दीप के अपसारण प्रयुक्त है। वह भी वास्तविक नहीं है। न्यायदर्शन के इस मत का खंडन करते हुए कह रहे हैं कि तम में जो नील रूप की प्रतीति होती है वह वास्तविक है। जगत् में शुक्लादि सात प्रकार के वर्ण (रंग) में नील वर्ण भी एक स्वतन्त्र वर्ण है। वर्ण परम्परा का अभाव भी नहीं है। जहां वर्ण का अभाव होता है, वह वस्तु अमूर्त कही जाती है, क्योंकि अवर्णत्ववर्णरहितत्व ही अमूर्त का लक्षण है। यत्र-यत्र वर्ण रहितत्वं तत्र तत्रामूर्तत्वम्। यह व्याप्ति भी यहां बनती है। कृष्ण वर्ण तो मूर्त ही है। यह बात सर्वानुभव सिद्ध है। अंधेरे में तम को सभी देखते ही हैं। ऐसी स्थिति में जिसकी सत्ता सिद्ध है उस तम का अस्तित्व नहीं है, ऐसा कहना उचित नहीं है। (४७) सम्प्रति आत्मनः स्वरूपं प्रस्तौति आत्मा का स्वरूप प्रस्तुत कर रहे हैं आत्मासंख्यप्रदेशी स्यात् सर्वे ज्ञानमयाश्च ते। नोपाधेः प्रतिबिम्बत्वं स्यादम्भंसीव हिमश्रुतेः॥४७॥ आत्मा के प्रदेश असंख्य हैं। वे सब चैतन्यमय हैं। जैसे पानी में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब होता है वैसे आत्मा उपाधि का प्रतिबिम्ब नहीं है। न्यायप्रकाशिका ___आत्मा असंख्यप्रदेशी अस्ति।अत्र संख्यातीताः प्रदेशाः सन्ति।तत्र कोऽयं प्रदेश इति जिज्ञासायामुच्यते, यत् अस्यां जगत्यां सर्वतः सूक्ष्ममेकं निरङ्गतत्त्वं परमाणुरस्ति। परमाणूनां प्रचयः स्कन्धः कथ्यते। तस्य स्कन्धस्यापृथक् भूतोऽविभाज्योंशः प्रदेशः कथ्यते।एतादृशलक्षणलक्षितैरसंख्यातप्रदेशैः समन्वित आत्मा भवति।ते सर्वे प्रदेशा ज्ञानमयाः सन्ति। चैतन्यं ज्ञानमेव। तस्मादात्मप्रदेशा ज्ञानमयाश्चैतन्ययुक्ताश्च सन्तीति स्पष्टं भवति। - कतिपये दार्शनिका वदन्ति यत् आत्मा द्विविधो जीवात्मा परमात्मा च। अनयोजीवात्मा प्रतिशरीरं व्याप्तः परमात्मनः प्रतिबिम्बोऽस्ति। अस्य चैतन्यं परमात्मनो लब्धंनतु स्वकीयम्।ज्ञानं चैतन्यञ्च एकमेव तत्त्वम्।तदपि परमात्मन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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