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________________ 85 जैनन्यायपञ्चाशती आवश्यकता है। इस प्रश्न के उत्तर में यह कहना है कि यह प्रयोग निश्चयनय की दृष्टि से है, व्यवहारनय की दृष्टि से नहीं। इसलिए व्यवहार को सम्पादित करने के लिए द्रव्यदृष्टि का आश्रय लेना चाहिए और वस्तु की अनेकान्तता को स्वीकार करना चाहिए। वस्तु का अनेकान्तत्व स्वीकार करने पर उसका एकत्व, अनेकत्व, नित्यत्व और अनित्यत्व सब विधिवत् सम्पन्न हो जाते हैं। वस्तु जब अनेकान्तात्मक होती है तब उस द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु में वस्तु को जब द्रव्यदृष्टि से देखा जाता है तब द्रव्य का नित्यत्व और एकत्व के आधार पर वस्तु का नित्यत्व और एकत्व सिद्ध होता है। जब वस्तु का पर्यायदृष्टि से विचार किया जाता है तब पर्यायों के अनेकत्व और अनित्यत्व के कारण वस्तु का अनित्यत्व और अनेकत्व सिद्ध होता है। यह सब अनेकान्तवाद में ही सुलभ है। एकान्तवाद में तो वस्तु नित्य या अनित्य, एक या अनेक ही हो सकती है, नित्यानित्य अथवा एकानेक नहीं हो सकती। इसलिए कारिकाकार का यह कथन सर्वथा सार्थक है कि एकान्तदृष्टि से पदार्थ की व्यवस्था कभी संगत नहीं हो सकती। द्रव्यों का नेत्य-अनित्य आदि सारा वास्तविक स्वरूप तो अनेकान्तवाद से ही जाना जा सकता है। शब्दः पौद्गलिकोऽस्ति।सच आकाशस्य गुणो नेति तथ्यं प्रतिपादयति शब्द पौद्गलिक है। यह आकाश का गुण नहीं है, इस तथ्य का प्रतिपादन कया जा रहा है पुद्गलप्रचयः शब्दः सचित्ताचित्तमिश्रभिद्। ___ न च व्योमगुणस्तावन्मूर्तत्वात् भवितं क्षमः॥३९॥ शब्द पौद्गलिक है। उसके तीन भेद हैं-सचित्त, अचित्त और मिश्र। शब्द |काश का गुण नहीं हो सकता, क्योंकि आकाश अमूर्त है और शब्द मूर्त है। यप्रकाशिका शब्दो जगति निखिलव्यवहारस्य माध्यमः प्रकाशस्वरूपश्च। यदि शब्दो स्यात् अस्मिन् जगति तदा तु जीवनव्यवहारस्य लोपः सर्वथा। तं विना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004165
Book TitleJain Nyaya Panchashati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishwanath Mishra, Rajendramuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2012
Total Pages130
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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