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देखकर चौहान लोग भग गये । नारायणसिंह ने साश्चर्य इस घटना को देखा, इतने ही में गंगा ने आकर पिता को नमस्कार कर सारा वृतान्त सुनाया जिससे उसे अपार हर्ष हुआ ।
राजा अपने सोलह पुत्रों के साथ गुरुदेव को वन्दना करने गया और उन्हें बड़े समारोह से अपने नगर में लाया । गुरु महाराज के उपदेशों से प्रतिबोध पाकर राजा जैन हो गया । उसके सोलह पुत्रों से गांग, पालावत दुधेरिया, गोढ, गिड़िया, बांभी गोढ़वाड, थराबता, खुरघा, पटवा, गोप, टोडरवाल, भाटिया, आलावत, मोहीवाल, और वीरावत गोत्र हुए ।
छाजेड
सं० १२१५ में श्री जिनचन्द्रसूरिजी सवीयाणागढ़ पधारे। वहाँ राठौड़ आस्थानके पुत्र धांधल, तत्पुत्र रामदेव का पुत्र काजल रहता था । काजल ने सूरिजी से कहागुरुदेव रसायन से स्वर्णसिद्धि की बात लोक में सुनते हैं, क्या वह सत्य है ? गुरुदेव ने कहा- हम लोग सावद्य क्रिया के त्यागी हैं अतः धर्म क्रिया के अतिरिक्त आचरणा वर्ज्य है ! काजलने कहा -- एक वार मुझे दिखाइये, धर्मवृद्धि ही होगी । सूरिजीने कहा- यदि तुम जैनधर्म स्वीकार करो तो मैं दिखा सकता हूँ। काजल अपने पिता से पूछ कर जैन श्रावक हो गया । सूरिजी ने दीवाली की रात्रि में लक्ष्मी मंत्र से अभिमंत्रित वासक्षेप देते हुए कहा- यह चूर्ण जिस पर डालोगे वही सोना हो जायगा ! यह प्रभाव केवल आज रात्रि भर के लिए है । काजल जैन मन्दिर, देवी के मन्दिर और अपने घर के छज्जों पर वासक्षेप डाल कर
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