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गोत्री कहलाये । दूगड सूगड के नाम से दूगड़ सूगड़ गोत्र प्रसिद्ध हुआ । खेता से खेताणी ओर कोठार का काम करने से कोठारी कहलाये।
__ आधरिया गोत्र सिंध देश का राजा गोशलसिंघ भाटी राजपूत था तथा उसका परिवार करीब १५०० घरका था, वि० सं० १२१४ में उन सब को नरमणि मंडित भालस्थ खोडिया क्षेत्रपाल सेवित खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज ने प्रतिबोध देकर उसका महाजन वंश और आधरिया गोत्र स्थापित किया । गांग, पालावत, दुधेरिया, मोहोबालादि १६ गोत्र
मेवाड़ के मोहीपुर के राजानारायणसिंह पमार राज्य करता था । एकबार चौहानों ने मोहीपुरको घेर लिया । उनके साथ संग्राम करते शत्रु की शक्ति से चिन्तातुर हो गया। राजा के गंगा नामक पुत्रने कहा-महाप्रभावी जिमचन्द्रसूरिजी को मैंने देखा हैं, वे अपनी चिन्ता मिटा सकते है ! पिता ने कहा-उनके पास जावे कौन ? पुत्र ने कहा-मैं छनवेश से चला जाऊंगा । दूसरे दिन गंगा वेश बदल कर नगर से निकला । अजमेर के पास गुरु महाराज उसे मिले । गुरुदेव से एकान्त में अपनी कष्ट गाथा कही तो गुरुदेव ने उसे सकुटुम्ब जैन होने का उपदेश दिया । उनके स्वीकार करने पर गुरुदेव ने उपसर्गहर स्तोत्र स्मरण किया विजया, जयादेवीने प्रकट होकर एक विजयी अश्व प्रस्तुत किया जिस पर सवार होकर गंगा गया । देवी के प्रभाव से असंख्य सेना हो गई, जिसे
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