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________________ एक विधवा स्त्री गई हुई थी। वह पुत्रों को खाने पीने की वस्तु देकर पुष्कर में स्नान करने लगी। संयोगवश एक गाह आकर उसे अपने तंतु जाल में जकड़ कर गहरे जल में खींचने लगा। सकतसिंह उसे बचाने के लिए कूद पड़ा पर उसे भी ग्राहने फंसा लिया। इतने ही में श्री जिनदत्तसूरि के शिष्य देवगणि स्थंडिल भूमिसे आ रहे थे उन्होंने उपस्थित श्रावकों को प्रेरित कर दोनों को मृत्युमुखसे निकाल लिया। हजारों दर्शक आश्चर्य पूर्वक मुनिराज को वन्दन करने लगे। सकतसिंह ने उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन करते हुए कुछ सेवा फरमाने के लिए निवेदन किया। गणिजीने कहा हमारे गुरुमहाराज कल अजमेर से यहाँ आ रहे हैं ! दूसरे दिन सूरिजी के पधारने पर राठौड़ सकतसिंह उनकी धर्म देशना से प्रतिबोध पाकर जैन हो गया। वह विधवा महेश्वरणी भी अपने पुत्रों के साथ जैन हो गयी। पुष्करजी के नाम से इनका गोत्र पोकरणा प्रसिद्ध हुआ । . कठोतिया, जायलनगर के निकटवर्ति कठोती ग्राम का अजमेरा ब्राह्मण भगन्दर रोग पीड़ित था । सं० ११७६ में श्री जिनदत्तसूरिजी के पधारने पर उसने अपना दुख सुनाया तो कृपालु गुरुदेव ने उसे निरोग करके जैन बनाया और कठोतिया गोत्र की स्थापना की । ... आबेड़ा, खटोल मारवाड़ खाटू में चौहान बुधसिंह व अड़पायतसिंह रहते थे । गुरुदेव की कृपा से उसको लक्ष्मी प्राप्ति की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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