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________________ देवभद्रसूरि ने उनके पद पर सं०.११६७ में महान् विद्वान श्री जिनवल्लभसूरि* को स्थापित किया। थोडे समय बाद ही उनका स्वर्गवास हो गया, अतः उनके पट्ट पर श्रीदेव. भद्रसूरिजी ने ही सं० १९६९ में श्री जिनदत्तसूरिजी को स्थापित किया, जो कि 'बडे दादाजी' के नाम से प्रसिद्ध हैं । सं० १२११ अजमेर में उनका स्वर्गवास हुआ। उनके पट्टधर मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिजी हुए, जो सं० १२२३ में दिल्ली में स्वर्गवासी हुए। महरोली में आज भी उनका चमत्कारी स्तूप मंदिर पूज्यमान है । इनके पट्टधर ३६ वादविजेता जिनपतिसूरिजी हुए, सं० १२७८ में उनका स्वर्गवास हुआ। आपके पट्टधर नेमीचंद्र भण्डारी के सुपुत्र जिनेश्वरसूरि प्रतिष्ठित हुए, जिनका स्वर्गवास सं० १३३१ में हुआ। इसी परम्परा में प्रगट प्रभावी श्री जिनकुशलसूरिजी हुए । जो 'छोटे दादाजी' कहलाते हैं । जिनका जन्म सं० ___* श्री जिनदत्तसूरिजी ने सवालक्ष या एक लाख तीस हजार जैन बनाये यह तो प्रसिद्ध ही है पर श्री जिनवल्लभसूरीजी ने भी एक लाख जैन बनाये यह आगे पृष्ठ में लिखा मिलता है :-'सवालाख खरतर जं० यु० भ० जगगुरु पूज्य श्रीपूज्य श्रीजिनदत्तसूरिजी कीधा । अने एक लाख घर खरतर जं० यु० पूज्य गुरु जिनवल्लभसूरिये गुरे कीधा । इसी गुरु चेलां री आसति' । श्री जिनकुशलसूरिजी के पचास हजार जैन बनाने की प्रसिद्धि है। .. ' वागड़ देश, जो हांसी-हिसार के आस पास प्रदेश का भी प्राचीन नाम रहा है, वहां श्रावकोकों प्रतिबोध देने के लिए जिनवल्लभसूरिजीने 'द्वादश कुलक' निर्माण कर भेजे थे । पट्टावलियों में लिखा है कि दस हजार बागड़ियों को जिनवल्लभसूरिजी ने प्रतिबोध दिया था । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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