SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनवल्लभ सूरिजी ने बागड़ी लोगों को प्रतिबोध दिया । मणिधारी श्री जिनचन्दसूरिजीने महत्तियाण जाति को जैन बनाया । इसी प्रकार अन्य कई खरतर गच्छाचर्यो ने क्षत्रियादि वंशों को प्रतिबोधित कर ओसवाल श्रीमाल जातियों में सम्मिलित किया अनेक नये गोत्रों की स्थापना की, उन्हीं महान् आचार्यों के पुण्य प्रभाव से लाखों जैनी आज धर्मसंस्कार को-जन्मजात लिए हुए हैं । भगवान् महावीर ने जो धर्म सन्देश दिया उसको गाँव-गाँव व जन जन में प्रचारित करने और जैन जातियों को संगठित करने में इन आचार्यों की बहुत बड़ी देन है । ओसवाल आदि जैन जातियों की वंशावलियां लिखने व परम्परागत सुनाते रहने का काम शताद्वियों तक कुलगुरु, भाट आदि करते रहे हैं, कुछ जैसे जैन ग्रन्थ भी उपलब्ध हैं जिनमें उन जातियों गोत्रोंकी उत्पत्ति, प्रतिबोधक आचार्यों एवं विशिष्ट कार्यो का विवरण मिलता है । उपकेशगच्छ प्रबन्ध, कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध, ओसवाल रास अवं गोत्रीय वंशावली आदि में ये विवरण प्राप्त है, हस्तलिखित फूटकर पत्रों और वंशावलियों आदि में भी महत्वपूर्ण उल्लेख है । मौखिक परम्परा में भी जो बातें चली आ रही थी, उनके आधार से बीकानेर के यतिवर्य श्री पालचन्द्रजी ने जैन-सम्प्रदाय शिक्षा और उपाध्याय रामलालजी की महाजन- वंश - मुक्तावली में खरतर गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिबोधित गोत्रों का विवरण दिया है ये दोनों ग्रंथ सन् १९९० में प्रकाशित हुए हैं । उपाध्याय लब्धि मुनि जी ने पद्यबद्ध संस्कृत पट्टावली त्रि० सम्बत् १९७० में रची है उसमें भी खरतर गच्छके आचार्यों द्वारा प्रतिबोधित गोत्रोंका अच्छाविवरण दिया है । यहाँ हमारे संग्रहके हस्त Jain Education International " For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy