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________________ खरतरगच्छ के आचार्या द्वारा प्रतिबोधित जैन जातिया व गोत्र [ अगरचन्द नाहटा * भंवरलाल नाहटा] भगवान महावीर के समय सभी वर्ण और जातिय बाले जनधर्म का पालन करते थे । उनके घरों में भिन्न - भिन्न आचार विचार वाले व्यक्ति एक माथ रहेने से अहिं सामय जैनधर्म को ठीक से पालन में कठिनाई अनुभव की जाने लगी। आगे चल कर जैनाचार्यों ने इस समस्या का मात्रा मप से समाधान जन जातियों के स्वतंत्र संगठन के. रूप में कर दिया। कहा जाता है कि राजस्थान के प्राचीन नगर श्रीमाल में जिन अजेनों को प्रतिबोधित किया गया वे हम नगर के नाम से श्रीमाल जाति वाले प्रसिद्ध हुए श्रीयाल नगर के पूर्व दिशा में रहने वाले नवीन जैनों की जाति प्राग्वाट - पोरवाड नाम से प्रसिद्ध हुई । इसी प्रकार उपस नगर की स्थापना यामाल नगर के अंक राजकुमार ने की उनके साथ उहइ मंत्री भी था। आचाय रत्नप्रभ मूर ने अपने संयम और तपोबल से चमत्कार दिखाकर बहन बड़ी मंग्या में वहां के सभी वर्ण एवं जाति वाले लोगों को जनधर्म का प्रतिबोध दिया। उन लोगों की जाति का नाम उस नगर के नाम से उस ऊकम -ओसवाल प्रसिद्ध हया। इसी प्रकार पाली से पालीवाल खंडेला में खण्डेलवाल. अग्रोहा से अग्रवाल आदि ८४ जातियों प्रसिद्धि में आई । समय समय पर दिगम्बर और वेताम्बराचार्य ने उन्हें जनधर्म में दीक्षित किये । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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