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________________ 105. ( मरण - काल के निकट आने पर ) ध्यान में डढ़ता को लिये 106. हुए (जो व्यक्ति) शरीर के सब द्वारों का नियन्त्रण करके मौर मन को श्रात्मा में रोककर ललाट पर प्राण को स्थिर करके (रहता है) (तथा) जो शरीर को छोड़ते हुए ब्रह्मरूपी एकाक्षरीय प्रोम् शब्द का उच्चारण करते हुए (तथा) मुझको (परमात्मा को स्मरण करते हुए संसार से विश होता है, वह सर्वोच्च प्रवस्था को प्राप्त कर लेता है । 107. सर्वोत्तम सिद्धि को प्राप्त हुए महात्मा मुझ को प्राप्त करके अनित्य तथा दुःख के स्थान पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं करते हैं । 108. हे अर्जुन ! जिसके अन्दर (सब) प्राणी स्थित ( हैं ) जिसके द्वारा यह सब (जगत्) पैदा किया गया है, वह उच्चतम आत्मा है और ( वह) एकाग्र भक्ति से प्राप्त होने योग्य (होता है) ।. 109. हे शूरवीर ! इस धर्म में अश्रद्धा करते हुए व्यक्ति मुझको प्राप्त न करके मरण और जन्म-परम्परा के पथ पर लौटते हैं । 110. दृढ़ संकल्पवाले (तथा) निरन्तर दत्तचित्त (व्यक्ति) सदा मेरी स्तुति करते हुए और (मेरे लिए) उत्कंठित होते हुए और (मुझे) भक्तिपूर्वक प्रणाम करते हुए मेरी उपासना करते हैं । चयनिक Jain Education International For Personal & Private Use Only 41 ] www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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