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60. जिनका मन समता में स्थिर (है), उनके द्वारा इस लोक में
ही आसक्ति जीत ली गई (है) । (और) ब्रह्म (भी) शुद्ध और समतावाला (है), इसलिए वे ब्रह्म में (ही) स्थिर (हैं)।
61. (जो) निरासक्त और तनावमुक्त बुद्धिवाला (है), (वह)
ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म में स्थिर (रहेगा)। (अतः) (वह) प्रिय (वस्तु) को प्राप्त करके हर्षित नहीं होगा (और) अप्रिय (वस्तु) को प्राप्त करके दुःखी नहीं (होगा)।
62. बाह्य विषयों में जो अनासक्त (है), वह व्यक्ति जिस सुख __ को आत्मा में प्राप्त करता है, (उस) विनाशरहित सुख को ब्रह्मयोग से युक्त व्यक्ति (भी) प्राप्त करता है।
63. जो (व्यक्ति) आन्तरिक रूप से शान्त (है), (जिसमें)
आन्तरिक रूप से प्रसन्नता (है) (ौर) जो आन्तरिक रूप से प्रकाश ही (है), वह योगी (है) (जो) परमात्मा में ठहरा हुआ परमात्मा में लीन अवस्था को प्राप्त करता है।
64. (जिनके द्वारा) (सब) दोष नष्ट कर दिए गए (हैं),
(जिनके द्वारा) (सब) संदेह समाप्त कर दिए गए (हैं), (जिनके द्वारा) मन वश में कर लिया गया (है) तथा (जो) सब प्राणियों के कल्याण में संलग्न (रहते हैं), (वे) ऋषि परमात्मा में लीन अवस्था को प्राप्त करते हैं।
चयनिका
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