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तनाव मुक्त कर देती है और वह एक प्रकार से विशिष्ट व्यक्ति बन जाता है । उसमें एक असाधारण अनुभूति का जन्म होता है । इस अनुभूति को ही हम मूल्यों की अनुभूति कहते हैं । वह प्रब वस्तु-जगत में जीते हुए भी मूल्य-जगत में जीने लगता है । उसका मूल्य - जगत में जीना धीरे-धीरे गहराई की ओर बढ़ता जाता है । वह अब मानव मूल्यों को खोज में संलग्न हो जाता है । वह मूल्यों के लिए ही जीता है और समाज में उनकी अनुभूति बढ़े इसके लिए अपना जीवन समर्पित कर देता है । यह मनुष्य की चेतना का एक दूसरा प्रायाम है |
गीता' में चेतना के दूसरे प्रायाम की सबल अभिव्यक्ति हुई है । इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसे समाज की रचना करना है जिसमें नैतिक-प्राध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा हो । नैतिक मूल्य जहाँ सामाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की चर्या को सुव्यवस्था प्रदान करते हैं, वहाँ आध्यात्मिक मूल्य नैतिकता के लिए दृढ़ श्राधार का निर्माण करते हैं । बिना अध्यात्म के कोरी नैतिकता लड़खड़ा जाती है । अध्यात्म के आधार से नैतिकता वास्तविक बनती है । अध्यात्म और नैतिकता के इस मिले-जुले रूप को ही गीता ने देवी संपदा कहा है। जबव्यक्ति देवी संपदा को प्राप्त करने की ओर चलता है, तो उसमें नैतिक और प्राध्यात्मिक दोनों ही गुण विकसित होने
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1. गीता में 700 श्लोक हैं जो प्रट्ठारह अध्यायों में विभक्त है हमने इनमें से 170 श्लोकों का चयन 'गीता-चयनिका शीर्षक के अन्तर्गत किया है ।
चयनिका
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