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86. युजन्नेवं सदात्मानं योगी [(युजन्) + (एवस्) + (सदा) +
(प्रात्मानम्) + (योगी)] युजन् (युज्+युञ्जत) वकृ /1. एवम् (अ)=इस प्रकार. सदा (म)=निरन्तर. प्रात्मानम् (प्रात्मन्) 2/1. योगी (योगिन्) 1/1. विगतकल्मषः (विगतकल्मष) 1/। वि. सुखेन (अ) =सरलतापूर्वक. ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते [(ब्रह्मसंस्पर्शम्) + (प्रत्यन्तम्) + (सुखम्) + (प्रश्नुते)] ब्रह्मसंस्पर्शम् [(ब्रह्मन्--ब्रह्म)(संस्पर्श) 2/1]. अत्यन्तम् (अत्यन्त) 2/1 वि. सुखम् (सुख) 2/1.
प्रश्नुते (अश्) व 3/1 सक. 87. सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि [(सर्वभूतस्थम्) + (प्रात्मानम्) +
(सर्वभूतानि)] सर्वभूतस्थम् [(सर्व)वि-(भूत)-(स्थ) 21| वि]. आत्मानम् (प्रात्मन्) 2/1. सर्वभूतानि [(सर्व) वि-(भूत) 2/3]. चात्मनि [(च)+ (मात्मनि)] च (म)=ौर. प्रात्मनि (प्रात्मन्) 7/1. ईमते (ई) व 3/1 सक. योगयुक्तात्मा [(योग) + (युक्त)+
(प्रात्मा)] [(योग)-(युज्+युक्त) भूकृ-(प्रात्मन्) 1/1] सर्वत्र . (प्र)=हर समय. समदर्शनः (समदर्शन) 1/1 वि.
.. 88. सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः [(सर्वभूतस्थितम्) + (यः)
+ (माम्)+ (भजति) + (एकत्वम्) + (मास्थित:)] सर्वभूतस्थितम् [(सर्व) वि-(भूत)-(स्था--स्थित) भूक 2/1]. यः (यत्) 1/1 सवि. माम् (अस्मद्) 2/1 स. भजति (भज्) व 3/1 सक. एकत्वम् (एकत्व)2/1. प्रास्थितः (मा-स्था+मास्थित!) भूकृ 1/1 सर्वथा (म)=सर्व तरह से. वर्तमानोऽपि .[(वर्तमानः) +(मपि)] वर्तमानः
1. यह कर्तृवाच्य में प्रयुक्त होता है।
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गीता
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