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________________ 7. सर्वकर्माणि [ ( सर्व ) - ( कर्मन् ) 2 / 3] मनसा (मनस् ) 3 / 1 सन्यस्यास्ते [ ( संन्यस्य) + (श्रास्ते ) ] संन्यस्य (संनि- प्रस् संन्यस्) पूकृ. प्रास्ते (प्रास्) व 3 / 1 प्रक. सुखं वशी [ ( सुखम् ) + (वशी)] सुखम् (क्रिविप्र ) = प्रसन्न -तापूर्वक वशी ( वशिन् ) 1 / 1 वि. नवद्वारे [ ( नव) - ( द्वार) ● 7/1] पुरे (पुर) 7/1 बेही (देहिन् ) 1/1 न ( अ ) = नहीं. एव (प्र) = ही. कुर्वन्न वि नव [ (न) + (एव) ] [( कुर्वन्) + (न)] कुर्वन् प्रे. (कृ→ कुर्वत्) वकृ 1 / 1. न ( अ ) = नहीं कारयन् (कृ→कारय् कारयत्) प्रे. वकु 1 / 1. 8. ज्ञानेन (ज्ञान) 3 / 1 तु (प्र) = तो तवज्ञानं येषां नाशितमात्मनः [ (तत्) + (प्रज्ञानम्) + (येषाम्) + ( नाशितम्) + (आत्मनः ) ] (तत्) 1 / 1 सवि. प्रज्ञानम् ( अज्ञान ) 1 / 1. येषाम् (यत्) प्रे. नाशितम् (नश्नाशय् + नाशित) भूकृ 1 / 1. श्रात्मन: (प्रात्मन्) 6/1 तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति [ (तषाम्) + (प्रादित्यवत्) + ( ज्ञानम्) + ( प्रकाशयति ) ] तेषाम् (तत्) 6 / 3 स. प्रादित्यवत् 1 ( प्र ) = प्रे. सूर्य के समान ज्ञानम् (ज्ञान) 1 / 1. प्रकाशयति ( प्र - काश् + प्रकाशय् ) प्रे. व 3/1 सक. तत्परम् [ (तत्) + (परम् ) ] तत् (तत्) 2 / 1 सवि परम् (पर) 2 / 1 वि. 9. तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः [(तत्) + (बुद्धयः) + (तत्) + ( श्रात्मानः ) + (तत्) + (निष्ठाः) + (तत्) + (परायणाः ) ] Jain Education International तत् 6/3 स. 1. 'समानता' धर्म को प्रकट करने के लिए संज्ञा या विशेषण शब्दों के साथ 'बत्' जोड़ दिया जाता है और ऐसे शब्द अव्यय हो बाते हैं । चयनिका ] For Personal & Private Use Only 85 ] www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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