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________________ (लोकसंग्रह)2/1. एव (अ)=केवल. अपि (अ)= भी. संपश्यन्कर्तुमर्हसि [(संपश्यन्) + (कर्तुम्) + (अर्हसि)] संपश्यन् (सम्-दृश्-+संपश्यत्) वकृ 1/1. कर्तुम् (कृ--कर्तुम्) हेकृ. अर्हसि (अर्ह,) व 2/1 अक. 31. यद्यदाचरति [(यत्) + (यत्) + (प्राचरति)] यत् (यत्) 2/1 सवि. प्राचरति (मा-चर्) व 3/1 सक. श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः [(श्रेष्ठः) + (तत्) + (तत्) + (एव) + (इतरः)+ (जनः)] श्रेष्ठः (श्रेष्ठ) 1/1 वि. तत् (तत्) 2/1 सवि. एव (अ)=ही. इतरः (इतर) 1/1 वि. जनः (जन)1/1. स यत्प्रमाणं कुरुते [(सः) + (यत्)+ (प्रमाणम्) + (कुरुते)] सः (तत्) 1/1 सवि. यत् (यत्) 2/1 सवि. प्रमाणम् (प्रमाण)2/1. कुरुते (कृ) व 3/1 सक. लोकस्तवनुवर्तते [(लोकः)+ (तत्) + (अनुवर्तते)] लोकः (लोक) 1/1. तत् (तत्) 2/1 सवि. अनुवर्तते (अनु-वृत्) व 3/1 सक. 32. न (अ)=नहीं मे (अस्मद्) 4/1 स पार्थास्ति [(पार्थ) + (अस्ति)] पार्थ (पार्थ)8/1. अस्ति (अस्) व 3/1 प्रक. कर्तव्यं त्रिषु [(कर्तव्यम्) + (त्रिषु)] कर्तव्यम् (कर्तव्य) 1/1. त्रिषु (त्रि) 7/3. लोकेषु (लोक) 7/3 किंचन (किम् + चन) 1/1 सवि नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव [(न) + (अनवाप्तम्) + (अवाप्तव्यम्) + (वर्त) + (एव)] न (प्र)=नहीं. अनवाप्तम् (मन्-प्रव-प्राप्-+अन्-प्रव-प्राप्त अनवाप्त) भूक 1/1. अवाप्तव्यम् (भव-प्राप्-+प्रव-प्राप्तव्यअवाप्तव्य) विधि कृ 1/1. वर्ते (वृत) व 1/1 अक. एव (म)=ही च (अ)=यद्यपि कर्मरिण (कर्मन्) 7/1 1. सर्वनाम 'किम्' के साथ प्रयुक्त होकर मनिश्चयात्मक अर्थ को व्यक्त करता है। चयनिका 75 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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