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कृतेन
( कृकृत ) भूकृ 3/1.
तेन ) - ( इह ) ] 1 / 1. न ( प्र ) = नहीं. प्रकृतेन ( प्र - कृ प्रकृत) भूकृ 3 / 1. इह ( अ ) = इस लोक में कश्चन (क: +. चन 1 ) कः ( किम् + चन) 1/1 सविन ( प्र ) = नहीं चास्य [ (च) + ( ग्रस्य ) ] 'चं ( प्र ) = निस्सन्देहअस्य (इदम्) 6 / 1 स. सर्वभूतेषु [ ( सर्व ) - (भूत) 7/3] कश्चिदर्थव्यपाश्रयः [ ( कश्चित् ) + (अर्थ) + (व्यपाश्रयः ) ] कश्चित् ( कः + चित् ' ) कः ( किम् + चित्) सवि [(अर्थ) - (व्यपाश्रय) 1/1 वि]
1 / 1
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29 तस्मादसक्तः [ ( तस्मात्) + (प्रसक्त: ) ] तस्मात् ( अ ) = इसलिए. असक्त: ( असक्त ) 1/1 वि. सततं कार्यं कर्म [ ( सततम्) + ( कार्यम् + कर्म) ] सततम् (अ) | === लगातार कार्यम् (कृ + कार्य) विधि कृ 2/1. कर्म (कर्मन्) 2/1. समाचर ( सम्-प्रा- चर् ) प्राज्ञा 2/1 सक असतो ह्याचरन्कर्म [ (असक्तः) + (हि) + (प्रचारन्) + (कर्म)] प्रसक्तः (प्रसक्त) 1 / 1 वि. हि (प्र) = क्योंकि. प्राचरन् (ग्रा-चर् → प्राचरत् ) वकृ 1/1. कर्म (कर्मन् ) 2 / 1. परमाप्नोति [ ( परम्) + ( प्राप्नोति ) ] परम् (पर) 2 / 1. प्राप्नोति ( प्राप्) व 3 / 1 सक. पुरुष: ( पुरुष ) 1/1 30. कर्मणैव [ ( कर्मणा ) + (एव)] कर्मणा ( कर्मन् ) 3 / 1 एव ( अ ) = ही . हि ( अ ) = इसलिए संसिद्धिमास्थिता जनकादय: [ ( संसिद्धिम्) + (प्रस्थिताः) + ( जनकादयः) ] संसिद्धिम् (संसिद्धि) 2 / 1 ग्रास्थिताः 1 ( श्रा-स्था प्रास्थित ) भूकृ 1 / 3. जनकादय: ( जनकादि ) 1 / 3. लोकसंग्रहमेवापि [ ( लोकसंग्रहम्) + (एव) + (अपि)] लोकसंग्रहम्
1. प्राय: 'अनिश्चय' अर्थ प्रकट करने के लिए 'किम्' के साथ 'चन' या चित् जोड़ दिया जाता है । ( प्राप्टे-संस्कृत हिन्दी कोष ) .
1. यह कर्तुं वाच्य में भी प्रयुक्त होता है ।
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ग्रर्थः (अर्थ)
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गीता
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