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________________ व 3 / 1 क निस्पृहः (निःस्पृह) 1 / 1 वि निर्ममो निरहंकार : स शान्तिमधिगच्छति [ ( निर्मम:) + ( निरहंकार:) + ( प ) + (शान्तिम्) + (प्रधिगच्छति ) ] निर्मम: ( निर्मम ) 1 / 1 वि. निरहंकार: ( निरहंकार ) 1 / 1 वि. सः (तत्) 1 / 1 सवि. शान्तिम् (शान्ति) 2 / 1. अधिगच्छति (अधि - गम्) व 3 / 1 सक 24. लोकेऽस्मिन्द्विविधा [ ( लोके) + (ग्रस्मिन्) + (द्विविधा ) ] लोके (लोक) 7 / 1. अस्मिन् (इदम्) 7 / 1 सवि द्विविधा ( द्विविधा ) 1 / 1 वि: निष्ठा (निष्ठा) 1 / 1 पुरा (प्र) = पहले प्रोक्ता ( प्रवच् + उक्त स्त्री प्रोक्त + प्रोक्ता ) भूकृ 1 / 1 मयानघ [ ( मया) + ( पनघ) ] मया (अस्मद् ) 3 / 1 स. अनघ ( प्रनध) 8 / 1 वि. ज्ञानयोगेन ( ज्ञानयोग ) 3/1 सांख्यानां कर्मयोगेन [ ( सांख्यानाम्) + ( कर्मयोगेन )] सांख्यांनाम् (सांख्य) 6 / 3. कर्मयोगेन (कर्मयोग) 3 / 1. योगिनाम् ( योगिन् ) 6/3 25. न ( अ ) = नहीं हि ( प्र ) = निस्संदेह कश्चित्क्षणमपि [ ( कश्चित्) [ ( क + (चित् ) ] + ( क्षरणम्) + ( श्रपि ) ] कः (किम्) + (चित् 2 ) लिए. अपि (प्र) = भी. कश्चित् । 1 / 1 स. क्षरणम् ( अ ) - एक क्षरण के जातु ( प्र ) = किसी समय तिष्ठत्यकर्मकृत् [ ( तिष्ठति ) + (कर्मकृत् ) ] तिष्ठति (स्था) व 3 / 1 प्रक. श्रकर्मकृत् प्रे कर्म 2 [ (कर्म) - (कृत् ) ± 1 / 1 वि]. कार्यते ( कृ कारयू कर्म व 3 / 1 सक ह्यवश: [ (हि) + ( प्रवशः ) 1. किम् भौर किम् से उत्पन्न अन्य शब्दों के साथ जुड़ने वाला ग्रव्यय, जिससे अर्थ में प्रनिश्चयात्मकता भाती है । कार्यते) प्रे. ] हि (प्र) = क्योंकि. 2. कृत् (वि) : प्राय: समास के अन्त में प्रयुक्त । 3. प्रेरणार्थक का कर्मवाच्य बनाते समय प्रय् का लोप हो जाता है । 72 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only गीता www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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