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व्याकरणिक विश्लेषण
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1. देहिनोऽस्मिन्यथा [ ( देहिनः ) + (अस्मिन्) + (यथा ) ] देहिनः ( देहिन् ) 6 / 1. प्रस्मिन् (इदम्) 7/1 सवि यथा (प्र) – जैसे. देहे (देह) 7/1 कौमारं यौवनं जरा [ ( कौमारम्) + ( यौवनम् ) + (जरा)] कौमारम् ( कौमार ) 1 / 1. यौवनम् ( यौवन) 1 / 1. जरा (जरा) 1 / 1. तथा (प्र) = वैसे ही बेहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र [ (देह) + (अन्तर ) + (प्राप्तिः) + (धीर: ) + (तत्र ) ] [ (देह) - ( अन्तर ) 2 - ( प्राप्ति ) 1/1] धीरः (धीर) 1 / 1 वि. तत्र ( अ ) = उसमें न ( प्र ) = नहीं मुह्यति (मुह ) व 3 / 1 अक. 2 न ( अ ) = नहीं जायते (जन्) व 3 / 1 ( प्र ) - प्रौर कदाचिन्नायं भूत्वा [ ( कदाचित्) + (न) + (प्रयम्) + (भूत्वा ) ] कदाचित् (प्र) = कभी न (प्र): = नहीं प्रयम् (इदम्) 1/1 (भू) पूकृ. भविता (भवितृ ) 1/1 वि. वा (प्र) = तथा न भूय: ( अ ) = नये रूप से अजो नित्यः [ ( श्रजः ) + ( नित्यः ) ] 1 / 1 वि. नित्यः (नित्य) 1 / 1 वि. शाश्वतोऽयं पुराणो न (अयम्) + ( पुराण:) + (न)] शाश्वतः ( शाश्वत ) 1 / 1 वि. प्रयम् (इदम्) 1 / 1 वि. न ( अ ) - नहीं हन्यते ( हन्) वकर्म 3/1 सक हन्यमाने ( हन् + हन्यहन्यमान) वकृ कर्म 7 / 1 शरीरे (शरीर) 7/1
ग्रक म्रियते (मृ) व 3 / 1 प्रक वा
-
सवि.
भूत्वा
(
अ ) = नहीं अज: ( अ ज )
[ ( शाश्वत ) +
3. वासांसि ( वासस् ) 2 / 3 जीर्णानि ( जीर्ण ) 2/3 वि. यथा ( अ ) = जैसे विहाय (वि-हा) पूकृ नवानि ( नव) 2/3 वि. गृह्णाति (ग्रह) व 3 / 1 सक नरोऽपराणि [ ( नर:) + (अपराणि) ] नरः (नर) 1 / 1. अपराणि ( अपर) 2 / 3 वि. तथा ( प्र ) = वैसे ही शरीराणि (शरीर ) 2/3
1. 'दूसरा ' अर्थ में 'धन्तर' सदैव समस्तपद का उत्तर पद रहता है ।
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[ गीता
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