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167. (ऐसे व्यक्ति) मृत्यु तक असंख्य चिन्ताओं को पालते हुए
(जीते है) तथा विषय-भोगों में पूर्णतः संलग्न (रहते हैं)। इस तरह (वे) (दुष्ट-संकल्पों में) इतने दृढ़ (होते हैं) (कि) (वे) (मृत्य तक) (इसी प्रकार जोते हैं) ।
168. (ऐसे व्यक्ति) सैकड़ों आशारूपी बेड़ियों से बंधे हुए (रहते
हैं), (वे) काम-क्रोध के वशीभूत होते हैं, काम-भोग के लिए अन्याय से (विभिन्न प्रकार के) धन-संग्रह को चाहते हैं ।
169. आज मेरे द्वारा यह (इच्छित वस्तु) प्राप्त की गई (है),
(भविष्य में भी) (मैं) इच्छित वस्तु को प्राप्त करूंगा; यह धन मेरे लिए है। इसी प्रकार दुबारा भी (मेरे लिए) धन होगा।
170. (जो) अनेक इच्छात्रों से व्याकुल (हैं), मूर्छारूपी जाल
से ढके हुए (हैं) (तथा) काम-भोगों में अनुरक्त (हैं), (वे) अपवित्र नरक में गिरते हैं।
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