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________________ 161. 160. हे अर्जुन ! भय का अभाव, स्वभाव की पवित्रता, अध्यात्म ज्ञान की प्राप्ति में दृढता, दानशीलता, आत्म-संयम, पूजा162. भक्ति, स्वाध्याय, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्य, क्रोध का प्रभाव, त्यागशीलता, शान्ति, चुगली का प्रभाव, प्राणीमात्र के प्रति दया, लालसा का प्रभाव, उदारता, विनय, चंचलता का अभाव, आत्मबल, क्षमा, धैर्य, ईमानदारी, द्वेषरहितता, अति अहंकारिता का न होना- (ये) (गुण) देवी संपदा को प्राप्त किए हुए (व्यक्ति) के होते है । 1 163 हे अर्जुन ! जालसाजी, उदण्डता और अहंकार, क्रोध और निर्दयता तथा आध्यात्मिक ना समझी - (ये) (सब) आसुरी संपदा को प्राप्त किए हुए (व्यक्ति) के (दोष) (हैं) । 164. हे अर्जुन ! देवी संपदा मोक्ष (शान्ति) के लिए (तथा) आसुरी (संपदा) बन्धन (शान्ति) के लिए मानी गई ( है ), (चूँकि ) (तू) दैवी संपदा को प्राप्त किया हुआ ( है ) ( इसलिए) शोक मत (कर) । 165. आसुरी (संपदावाले) लोगों ने (आध्यात्मिक मूल्यों में) प्रवृत्ति को तथा ( प्रासक्ति से) निवृत्ति को कभी नहीं जाना । उनमें न शुद्धि ( होती है), न ही आचरण और न ही सत्य । 166. (जिनके) संकल्प अपवित्र ( हैं ), (वे) कठिनाई से पूरी की जानेवाली इच्छात्रों का अनुगमन करके जालसाजी, घमण्ड (तथा) कामुकता से युक्त (हो जाते हैं) । (और) (इस तरह) (उनको ) अज्ञान से ग्रहण करके मिथ्यात्व का स्वीकरण करते हैं । चयनिका Jain Education International For Personal & Private Use Only 59 ] www.jainelibrary.org
SR No.004162
Book TitleGeeta Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages178
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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