________________
(अणोवम) 2/1 । लहइ (लह) व 3/I. सकः। णिव्वाणं (णिव्वाण)
2/1। 59 ति गरो [(ति) वि-(पयार) 1/1] । सो (त) 1/1. सवि । अप्पा
(अप्प) 1/1/। परभितरबाहिरो [(पर) + (अभितर)+ (बाहिरो)] [(पर) वि-(अभितर) वि-(बाहिर) 1/1 वि] । हु .(अ) = निश्चय ही । हेऊण' (हेउ) 6/2 । तत्थ (अ) = उस अवस्था में । परो (पर) 1/1 वि । झाइज्जइ (झा) व कर्म 3/1 सक । अंतोवायेण [(अंत)+ (उवायेण)] अंत (अ)=प्रांतरिक उवायेण (उवाय) 3/1। चयहि (चय) विधि 2/1 सक । बहिरप्पा (बहिरप्प) 2/1 अपभ्रंश । . 1. कभी-कभी ततोया के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया
जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 60 अक्खाणि (अक्ख) 1/2 । बहिरप्पा (बहिरप्प) 1/1। अंतरप्पा (अंत
रप्प) 1/1 । हु (अ) = ही। अप्पसंकप्पो [(अप्प)-(संकप्प) 1/1] । कम्मकलंकविमुक्को [(कम्म)-(कलंक)-(विमुक्क) 1/1 वि । परमप्पा (परमप्प) 1/1। भग्णए (भण्ण) व कर्म 3/1 सक अनि । देवो
(देव) 1/1। 61 आरुहवि' (आरुह) संकृ अपभ्रंश । अंतरप्पा (अंतरप्प) 2/1 अपभ्रंश)।
बहिरप्पा (बहिरप्प) 2/1 अपभ्रंश । छरिऊण (छंड) संकृ। तिविहेण (तिविह) 3/1 । झाइज्जइ (झा) व कर्म 3/1 सक । परमप्पा (परमप्पा) 1/1। उवइट्ठ (उवइट्ठ) 1/1 वि.। जिणरिवेहि (जिरणवरिंद) 3/2 । 2. 'या' पूर्वक 'रुह' धातु के अर्थ प्रयुक्त संज्ञा के अनुसार विभिन्न प्रकार के होते हैं। (पारुह+अवि) =पारुहवि यहाँ 'अवि'
प्रत्यय जोड़ा गया है। 62 बहिरत्थे [(बहिर) + (अत्थे)][(बहिर) वि-(प्रत्थ) 7/1] । फुरियमणो
[(फुरिय) भूकृ-(मण) 1/1] । इंदियवारेण [(इंदिय)-(दार) 3/1] । णियसरूवचुओ [(रिणय) वि-(सरूव)-(चुअ) भूकृ 1/1 अनि] ।
54 ]
[ अष्टपाहुड
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org