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+ (बल) + (उद्धर) + ( कसाय) + (भड ) ] [ ( दुज्जय) वि - ( पबल) वि
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(बल) - (उद्धर) वि - ( कसाव ) - (भड ) 1 (रिगज्जय ) 1 / 2 वि । जहि (ज) 3 / 1 सवि ।
मूलशब्द 1/2] । णिज्जिया
1. • पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 )
56 मायावेल्लि [ ( माया ) - ( वेल्लि ) ' मूलशब्द 2 / 2 ] । असेसा (असेसा ) 2 / 2 वि । मोहमहातरवरम्मि [ ( मोह ) - (महा) - (तरुवर) 7 / 1 ] । आहढ़ा ( प्रारूढ ) भूकृ 2/2 श्रनि । विसर्याविसपुप्फफुल्लिय [ ( विसय ) - (विस) - ( पुप्फ) - ( फुल्ल ) 2 भूक मूलशब्द 2 / 2] । लुणंति ( लुण) व 3 / 2 सक। मुणि ( मुरिण) मूलशब्द 1 / 2 | णाणसत्थे ह [ ( गाण) - ( सत्थ) 3/2] ।
2. पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517 )
3. कर्ताकारक के स्थान में केवल मूल संज्ञा शब्द भी काम में लाया जा सकता है (पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 518 )
57 मोहमयगारहि [ ( मोह) - (मय ) - ( गारव) 3 / 2 ] । य ( अ ) = तथा । मुक्का ( मुक्क) 1/2 वि । जे (ज) 1 / 2 सवि । करुणभाव संजुत्ता [(करुरण) - (भाव) - (संजुत्त ) 1/2 वि ] ते (त) 1 / 2 सवि । सव्ववुरियखंभं [ ( सव्व). वि- (दुरिय ) - (खंभ ) 2 / 1] | हरणंति ( हण) व 3 / 2 सक | चारितखग्गेण [ ( चारित) - (खग्ग) 3 / 1 ] |
58 जं (ज) 2 / 1 सवि । जाणिऊणं (जाण) संकृ जोई (जोइ ) 1 / 1 1 - जोअत्थो (जोप्रत्थ) 1 / 1 वि । जोइऊण (जोन) संकृ । अणवरयं (त्रिवि) = लगातार । अब्बा बाहमणंतं [ ( अव्वाबाहं) + (प्रणंतं)] अव्वाबाहं (प्रव्वाबाह) 2 / 1 वि । प्रणतं ( अनंत ) 2 / 11 प्रणोवमं
चयनिका ]
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