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________________ 22 गाणं (णाण) 1/1। पुरिसस्स' (पुरिस) 6/1 । हववि (हव) व. 3/1 अक । लहदि (लह) व 3/1 सक । सुपुरिसो (सु-पुरिस). 1/1 । वि (अ) = ही । विणयसंजुत्तो [(विरणय)-(संजुत्त) 1/1 वि गारोण (सारण) 3/1 । लहदि (लह) व 3/1 सक । लक्खं (लक्ख) 2/1 | लक्खंतो (लक्ख) वकृ 1/1 । मोक्खमग्गस्स [(मोक्ख)-(मग्ग) 6/1] | ___ 1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) .. 23 मइधणुहं [(मइ)-(धणुह) 1/1] । जस्स (ज) 4/1 स । थिरं (थिर) 1/1 वि । सुदगुण [(सुद)-(गुण)मूलशब्द 1/1] । बाणा (बाण)1/2 । सुअस्थि (अ)= श्रेष्ठ । रयणत (रयणत्त) 1/1। परमत्थबद्धलक्खो [(परमत्थ)-(बद्ध)भूक अनि-(लक्ख)1/1] । वि (अ) = कभी नहीं। चुक्कदि (चुक्क) व 3/1 अक । मोक्खमग्गस्स [(मोक्ख)-(मग्ग) 6/1] 2. कभी कभी पंचमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) 24 धम्मो (धम्म) 1/1 । क्याविसुद्धो [(दया)-(विसुद्ध) 1/1 वि] । पव्व ज्जा (पव्वज्जा) 1/1 । सव्वसंगपरिचत्ता [(सव्व)वि-(संग)-(परिचत्ता) भूकृ 1/1 अनि । देवो (देव) 1/1 । ववगयमोहो [(ववगय) भूक अनि -(मोह) 1/1] । उदययरो (उदययर) 1/1 वि । भग्वजीवाणं [(भव्व) -(जीव) 6/2] । 25 सत्तू मित्त' [(सत्तू)-(मित्त) 7/1] । य (अ) = निश्चय ही। समा (समा)1/1 वि । पसंसणिवाअलदिलद्धिसमा[(पसंस')-(रिंणदा)-(अलद्धि) -[(लद्धि)-(समा) 1/1 वि] । तणकणए [(तण)-(कण) 7/1] । समभावा [(सम)-(भावा) 1/1] । पव्वज्जा (पव्वज्जा) 1/1 । एरिसा (एरिसा) 1/1 वि । भणिया (भरण) भूक 1/1। 3. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'तु' को 'त' किया गया है। 4. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'पसंसा' को पसंस किया गया है । 44 ] [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004161
Book TitleAshtapahud Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages106
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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