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________________ 2/। । इय (अ)= इस प्रकार । गाउं (गा) हेक । गुणवोसं [(गुग्ण)(दोस) 2/1 | । तं (त) 2/1 | सण्णाणं (मण्णाण) 2/1। वियाणेहि (वियाग) प्राज्ञा 2|| मक । 19 चारित्तसमारूढ़ो |(चारित्त) + (सम) + (ग्रारू ढो)] (चारित्त)-(सम) अ= पूर्णत:-(प्रारूढ) भूकृ ||| अनि । अप्पा (अप्प)2/1 अपभ्रण । सुपरं | (सु) अ= श्रेप्ठ-(पर) 2/1 वि । ण (अ)= नहीं । ईहए (ईह) व 3/1 मक । णाणी (गागि) I/1 वि । पावइ (पाव) व 3/1 सक । अइरेण (अ) = शीघ्र । अणोवमं (अगोवम) 2/1 वि । जाण (जारण) विधि 2/1 मक । णिच्छयदो (गिाच्छय) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय । 1. इसका प्रयोग प्राय: कत वाच्य में किया जाता है । 2. कभी कभी मप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का - प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 20 संजमसंजुत्तस्स [(संजम)-(संजुत्त) भूक 6/1 अनि] । य (अ)= तथा । सुझाणजोयस्स [(सु) =श्रेप्ठ-(झारण)-(जोय) 6/1 वि] । मोक्खमग्गस्स | (मोक्ख)-(मग्ग) 6/1] । णारगेण (गाण) 3/1 । लहदि (लह) व 3/1 सक । लक्खं (लक्ख) 2/1 । तम्हा (अ) = इसलिये । गाणं (गाग) 1/1 ! च (अ)=निश्चय ही । णायव्वं (णा) विधिक 1/1 । 21 जह (अ) = जैसे । णवि (अ)=नहीं । लहदि (लह) व 3/1 सक । हु (अ)=बिल्कुल ही । लक्खं (लक्ख) 2|| । रहिओ (रहिअ) 1/1 वि । . कंडस्स' (कंड) 6/1 । धेज्झयविहीणो [(वज्झय) 'य' स्वार्थिक वि(विहीण) 1/1 वि] । तह (अ) = वैसे ही । लक्खदि (लक्ख) व 3/1 . मक । लक्खे (लक्ख) 2/1 । अण्णाणी (अण्णागि) 1/1 वि । मोक्खमग्गस्स [(मोक्ख)-(मग्ग) 6/1] । ... 3. 'लह' का अर्थ यहाँ 'देखना' है । 4. कभी कभी तृतीय विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग - पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-134) चयनिका ] [ 43 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004161
Book TitleAshtapahud Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1998
Total Pages106
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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