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जलता है (47)। निश्चय ही पर द्रव्य (आत्मा के अतिरिक्त द्रव्य) से विमुख जो (व्यक्ति) सम्यक् प्रकार से आचरण करके स्व द्रव्य का ध्यान करते हैं, वे परम-शान्ति (समता/तनाव-मुक्तता) को प्राप्त करते हैं (68)। ___ चयनिका के उपर्युक्त विषय से स्पष्ट है कि अष्टपाहुड ने जीवन के मूल्यात्मक पक्ष का सूक्ष्मता से अवलोकन किया है । इसी विशेषता से प्रभावित होकर यह चयन (अष्टपाहुड चयनिका) पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। गाथाओं के हिन्दी अनुवाद को मूलानुगामी बनाने का प्रयास किया गया है । यह दृष्टि रही है कि अनुवाद पढने से ही शब्दों की विभक्तियां एवं उनके अर्थ समझ में आजाएँ। अनुवाद को प्रवाहमय बनाने को भी इच्छा रही है। कहां तक सफलता मिली है, इसको तो पाठक ही बता सकेंगे। अनुवाद के अतिरिक्त गाथाओं का व्याकरणिक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया गया है। इस विश्लेषण में जिन संकेतों का प्रयोग किया गया है, उनको संकेत सूची में देखकर समझा जा सकता है। यह आशा को जाती है कि प्राकृत को व्यवस्थित रूप से सीखने में सहायता मिलेगी तथा व्याकरण के विभिन्न नियम सहज में ही सीखे जा सकेंगे यह सर्व विदित है कि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यावश्यक है। प्रस्तुत गाथाएँ एवं उनके व्याकरणिक विश्लेषण से व्याकरण के साथ-साथ शब्दों के प्रयोग भी सीखने में मदद मिलेगी। शब्दों की व्याकरण और उनका अर्थपूर्ण प्रयोग दोनों ही भाषा सीखने के प्राधार होते हैं। अनुवाद एवं व्याकरणिक . विश्लेषण जैसा भी बन पाया है पाठकों के समक्ष हैं। पाठकों के सुझाव मेरे लिए बहुत ही काम के होंगे। प्राभार :
'अष्टपाहुड चयनिका' के लिए हमने अष्टपाहुड की तीन संस्करणों का उपयोग किया है । (क) पं. जयचन्दजी छाबड़ा द्वारा सम्पादित चयनिका ]
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