________________
जाती है। इससे हमारी सदुइच्छाएँ कुठित हो जाती हैं और व्यक्ति चिन्ताग्रस्त ही रहता है।
(२) (क) (i) दुःखात्मक संवेगों की एक स्थिति उस समय पैदा होती है जब कोई असाध्य रोग से पीड़ित हो जाए या कोई ऐसे रोग से पीड़ित हो जाए जो साधनों के अभाव में न मिटाया जा सके। इसके अतिरिक्त अत्यधिक गरीबी दुःखात्मक संवेगों को जन्म देती है। रोगों की तरह गरीबी भी जीवन को दुखी बना. देती है और इनसे दुखात्मक मानसिक अवस्था की स्थिति बनती है। यहाँ दुःख ही हमारे मन को सदैव पकड़े रखता है। अतः यह चिन्ताग्रस्त स्थिति मानसिक तनाव को उत्पन्न करती है ।
(२) (क) (ii) व्यक्ति के जीवन में धन -था व्यक्तियों से उसका संबंध दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण होते .. । पर किसी मित्र प्रथवा निकट के सहयोगी की मृत्यु जीवन को झकझोर देती है और यह एक अपूरणीय क्षति होती है । इसके अतिरिक्त धन की हानि भी गंभीर समस्याएं पैदा कर देती हैं । ये दोनों ही व्यक्ति में दुःखात्मक संवेग उत्पन्न कर उसको कुठित कर देते हैं। इनसे उत्पन्न मानसिक तनाव असहनीय होता है। इसी प्रकार सामाजिक प्रतिष्ठा की क्षति भी दुःखदायी होती है और तनाव का कारण बन जाती है । इसी तरह से इष्ट-वियोग प्रगति में बाधक बन जाते हैं।
(२) क(iii) जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कभी कभी ऐसे व्यक्तियों व घटनामों से संयोग हो जाता है तथा साथ में रहने वाले व्यक्तियों के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन हो जाता है जो अनिष्टकारी होता है, जिनके कारण दुःखात्मक संवेग उत्पन्न होते हैं और मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वैवाहिक अनबन, कौटुम्बिक मनमुटाव, संस्थागत कलह, प्राकृतिक विपदाएँ, महामारी, दुर्घटनाएँ
चयनिका ] .
...
[ ix
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org